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Bombay HC: बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी आरोपी को बिना ट्रायल लंबे समय तक जेल में रखना, उसे ट्रायल से पहले ही सजा देने जैसा है। कोर्ट ने साफ किया कि जमानत नियम है और इसका इनकार अपवाद होना चाहिए।
आर्थर रोड जेल में 50 की जगह 250 तक कैदी रह रहे
जस्टिस मिलिंद जाधव की बेंच ने यह टिप्पणी 9 मई को एक केस की सुनवाई के दौरान की। कोर्ट ने कहा कि आजकल ट्रायल खत्म होने में बहुत ज्यादा वक्त लग रहा है और जेलों में भीड़ लगातार बढ़ रही है। आर्थर रोड जेल के अधीक्षक की दिसंबर 2024 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट ने बताया कि वहां की क्षमता से 6 गुना ज्यादा कैदी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, जहां एक बैरक में 50 कैदियों की जगह है, वहां 220 से 250 कैदी रखे जा रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि ऐसे हालात में न्यायपालिका को संतुलन बनाना होगा।
लंबी कैद से संविधान में मिले अधिकारों का हनन
कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले उन विचाराधीन कैदियों की आजादी से जुड़े हैं, जो लंबे समय से जेल में हैं। इससे उनके संविधान में मिले त्वरित न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है। कोर्ट ने कहा कि जमानत का सिद्धांत यही है कि आरोपी को निर्दोष माना जाए, जब तक कि उसका दोष साबित न हो जाए।
लंबी कैद को लेकर विचार जरूरी
जस्टिस जाधव ने दो विचाराधीन कैदियों द्वारा लिखे गए एक लेख ‘प्रूफ ऑफ गिल्ट’ का जिक्र किया, जिसमें यह सवाल उठाया गया था कि ट्रायल से पहले किसी को कितने समय तक जेल में रखा जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ लंबी कैद को जमानत का आधार नहीं बनाया जा सकता, लेकिन यह एक अहम मुद्दा है, जिस पर विचार जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल से पहले किसी को लंबे समय तक जेल में रखना, बिना दोष साबित हुए सजा देने जैसा है।
प्रॉसिक्यूशन को सोच बदलने की जरूरत
कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष को अपनी सोच और रवैये में बदलाव लाना होगा। कई बार गंभीर अपराध के नाम पर वे जमानत का विरोध करते हैं, जबकि आरोपी लंबे समय से जेल में होता है और ट्रायल शुरू भी नहीं हुआ होता। कोर्ट ने कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली का मूल सिद्धांत यही है कि जब तक दोष साबित न हो, आरोपी को निर्दोष माना जाए। इस केस में आरोपी 6 साल से जेल में है और ट्रायल शुरू होने की कोई संभावना नहीं दिख रही है। कोर्ट ने 2018 में अपने भाई की हत्या के आरोप में गिरफ्तार विकास पाटिल को जमानत दी।