
Supreme Court India
BLOOD DONATION: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स, गे पुरुषों और सेक्स वर्कर्स के रक्तदान पर रोक लगाने वाली मेडिकल गाइडलाइंस पर सवाल उठाए हैं।
तर्क: गाइडलाइंस नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल ने जारी की थीं
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की बेंच ने इस मामले में दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि क्या हम इस तरह से एक अलग-थलग समूह नहीं बना रहे हैं? इस तरह की पाबंदियों से सामाजिक पूर्वाग्रह और भेदभाव और बढ़ते हैं। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह इस विषय पर विशेषज्ञों से राय लेकर बताए कि क्या इन गाइडलाइंस में बदलाव संभव है, ताकि इन समुदायों को कलंकित न किया जाए। केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को बताया कि ये गाइडलाइंस नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल ने जारी की थीं। इसमें इन वर्गों को ‘हाई रिस्क’ माना गया है, इसलिए इन्हें रक्तदान से बाहर रखा गया है।
विषय विशेषज्ञों की राय से ही हल हो सकता है: कोर्ट
इस पर न्यायमूर्ति कोटिश्वर सिंह ने कहा, “क्या हम सभी ट्रांसजेंडर्स को जोखिम वाला मानकर उन्हें कलंकित नहीं कर रहे हैं? जब तक आप मेडिकल सबूत नहीं दिखाते कि ट्रांसजेंडर्स और इन बीमारियों के बीच कोई सीधा संबंध है, तब तक ऐसा कहना गलत है। सामान्य लोग भी ऐसे व्यवहार में शामिल हो सकते हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यह विषय विशेषज्ञों की राय से ही हल हो सकता है। उन्होंने कहा, “आप विशेषज्ञों से बात करें ताकि समुदाय को कलंकित न किया जाए और साथ ही मेडिकल सावधानियां भी बनी रहें।
2017 की गाइडलाइंस को दी गई है चुनौती
यह मामला 2017 में नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल और नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन द्वारा जारी की गई ‘ब्लड डोनर सिलेक्शन और डोनर रेफरल’ गाइडलाइंस से जुड़ा है। इसमें ट्रांसजेंडर्स, गे पुरुषों और महिला सेक्स वर्कर्स को रक्तदान से स्थायी रूप से बाहर रखा गया है।
तीन याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित
LGBTQIA+ समुदाय के सदस्यों ने सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाओं में कहा गया है कि रक्तदान के लिए किसी व्यक्ति से उसकी यौन पहचान और झुकाव पूछना भेदभावपूर्ण है। कोविड-19 महामारी के दौरान जब इन समुदायों के लोग और उनके परिवार मेडिकल इमरजेंसी में थे, तब भी उन्हें रक्तदान की अनुमति नहीं दी गई।
केंद्र ने कहा- HIV और हेपेटाइटिस का खतरा
केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि ट्रांसजेंडर्स, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों और महिला सेक्स वर्कर्स में HIV, हेपेटाइटिस B और C संक्रमण का खतरा अधिक होता है। इसलिए उन्हें रक्तदान से बाहर रखा गया है।
कोर्ट ने पहले भी जताई थी चिंता
6 सितंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि रक्त प्राप्त करने वाले को यह भरोसा होना चाहिए कि उसे सुरक्षित रक्त मिल रहा है। मार्च 2021 में कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और अन्य पक्षों से जवाब मांगा था।
याचिकाकर्ताओं का तर्क- गाइडलाइंस भेदभावपूर्ण
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये गाइडलाइंस HIV संक्रमण के वास्तविक कारणों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि दाताओं की यौन पहचान और झुकाव के आधार पर बनाई गई हैं। इससे समुदाय को कलंकित किया जा रहा है।