
Bridge Span Collapse at sultanganj, Bhagalpur
BIHAR News: सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में पुलों की सुरक्षा को लेकर पटना हाईकोर्ट को मासिक स्तर पर निगरानी करना चाहिए।
कई पुलों के गिरने के मामले में जनहित याचिका पर सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि पटना उच्च न्यायालय को राज्य में पुलों के संरचनात्मक और सुरक्षा ऑडिट को सुनिश्चित करने के लिए उठाए गए कदमों की निगरानी, अधिमानतः मासिक आधार पर करनी चाहिए। पुलों की सुरक्षा व लंबे समय तक नहीं चलने पर चिंता जताने वाली एक जनहित याचिका (PIL) को पटना हाईकोर्ट स्थानांतरित कर दिया। बता दें कि, बिहार में हाल के महीनों में कई पुलों के गिरने की घटनाओं के बाद यह याचिका दायर की गई थी।
बिहार सरकार का तर्क…10 हजार पुलों का किया गया निरीक्षण
पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता ब्रजेश सिंह, राज्य के अधिकारियों और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) को 14 मई को पटना हाईकोर्ट में पेश होने का निर्देश दिया, जहां अगली सुनवाई की तारीख तय की जाएगी। इस मामले में संक्षिप्त सुनवाई के दौरान, बिहार सरकार ने बताया कि उसने राज्य में लगभग 10,000 पुलों का निरीक्षण किया है। इस पर पीठ ने कहा, जवाबी हलफनामे को देखा है। इस मामले को पटना उच्च न्यायालय को स्थानांतरित कर रहे हैं। जवाबी हलफनामे में, राज्य के अधिकारियों ने बताया है कि वे क्या कर रहे हैं।
पुलों की जर्जर हालत को लेकर समाचारपत्र व अन्य दस्तावेज को रिकार्ड में शामिल करने की अपील
पिछले साल 18 नवंबर को, सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को इस जनहित याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए अंतिम अवसर दिया था। इससे पहले, याचिकाकर्ता ब्रजेश सिंह ने अदालत से अनुरोध किया था कि वे बिहार में पुलों की जर्जर स्थिति को उजागर करने के लिए विभिन्न समाचार रिपोर्टों और अतिरिक्त दस्तावेजों को रिकॉर्ड में शामिल करने की अनुमति दें। अदालत ने 29 जुलाई 2024 को बिहार सरकार और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) सहित अन्य से इस याचिका पर जवाब मांगा था। जनहित याचिका में एक संरचनात्मक ऑडिट के निर्देश देने और एक विशेषज्ञ समिति गठित करने की मांग की गई थी, जो यह निर्धारित करे कि किन पुलों को सुदृढ़ किया जा सकता है या ध्वस्त करने की आवश्यकता है।
पिछले साल 10 घटनाएं बिहार के विभिन्न हिस्सों में हुई थी
राज्य सरकार और NHAI के अलावा, शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में सड़क निर्माण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और ग्रामीण कार्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भी नोटिस जारी किया था। पिछले साल मई से जुलाई के बीच बिहार के सीवान, सारण, मधुबनी, अररिया, पूर्वी चंपारण और किशनगंज जिलों में पुल गिरने की दस घटनाएं दर्ज की गई थीं। कई लोगों का मानना है कि भारी वर्षा इन घटनाओं का कारण हो सकती है। जनहित याचिका में राज्य में पुलों की सुरक्षा और दीर्घायु को लेकर चिंता जताई गई थी, क्योंकि मानसून के दौरान बिहार में आमतौर पर भारी बारिश और बाढ़ आती है।
जनहित याचिका में उजागर हुई चिंताएं
इसके अलावा, जनहित याचिका में एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने और केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा निर्धारित मानकों के अनुसार पुलों की रीयल-टाइम निगरानी की भी मांग की गई थी। याचिकाकर्ता ने इस तथ्य को भी उजागर किया कि बिहार भारत का सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य है। उन्होंने उल्लेख किया कि राज्य का कुल बाढ़ प्रभावित क्षेत्र 68,800 वर्ग किलोमीटर है, जो इसके कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73.06 प्रतिशत है। बिहार में पुल गिरने की घटनाओं का बार-बार होना और भी विनाशकारी है, क्योंकि इससे बड़ी संख्या में लोगों की जान खतरे में पड़ जाती है। अतः इस अदालत का तत्काल हस्तक्षेप आवश्यक है ताकि लोगों की जान बचाई जा सके, क्योंकि निर्माणाधीन पुल अक्सर अपने पूर्ण होने से पहले ही गिर जाते हैं। पुल गिरने की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सड़क निर्माण और ग्रामीण कार्य विभागों को राज्य के सभी पुराने पुलों का सर्वेक्षण करने और उन पुलों की पहचान करने का निर्देश दिया है जिन्हें तुरंत मरम्मत की आवश्यकता है।