
Bar Council Of India Office, New Delhi
Bar news: सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) को कानून कॉलेजों के शैक्षणिक मामलों में हस्तक्षेप को लेकर फटकार लगाई और कहा कि यह काम शिक्षाविदों पर छोड़ देना चाहिए।
बीसीआई के फैसले को दी गई चुनौती
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ 2021 में BCI के एक वर्षीय एलएलएम पाठ्यक्रम को खत्म करने और विदेशी एलएलएम डिग्रियों को मान्यता नहीं देने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा, आप शैक्षणिक मामलों में हस्तक्षेप क्यों कर रहे हैं? कानून कॉलेजों के पाठ्यक्रम आदि का फैसला BCI क्यों करे? यह सब किसी शैक्षणिक विशेषज्ञ को देखने देना चाहिए। इस देश में वकीलों का बहुत बड़ा वर्ग है। आपके ऊपर इनकी जानकारी को अपडेट करने और उनके लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की एक कानूनी जिम्मेदारी है।
कानूनी शिक्षा में न्यायपालिका प्राथमिक हितधारक है
अदालत ने पूछा, “कानूनी शिक्षा में न्यायपालिका प्राथमिक हितधारक है… हमें किस तरह के अधिकारी मिल रहे हैं? क्या उन्हें ठीक से संवेदनशील किया गया है? क्या उनमें करुणा है? क्या वे जमीनी सच्चाइयों को समझते हैं या बस यांत्रिक निर्णय सुनाते हैं?” पीठ ने कहा कि शिक्षाविद इस मुद्दे की जांच कर सकते हैं। पीठ ने कहा, “आप (BCI) अपनी जिम्मेदारी संभालें। देश में लगभग 10 लाख वकील हैं और आपको उनकी प्रशिक्षण पर ध्यान देना चाहिए न कि कानून कॉलेजों का निरीक्षण करने पर।
पाठ्यक्रम की जिम्मेदारी शिक्षाविदों को सौंपी जानी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, “आप ड्राफ्टिंग की कला, केस लॉ की समझ आदि पर प्रशिक्षण दे सकते हैं और यह आपकी कानूनी जिम्मेदारी का हिस्सा होना चाहिए। पाठ्यक्रम की जिम्मेदारी शिक्षाविदों को सौंपी जानी चाहिए। जब वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा, जो BCI की ओर से पेश हुए, ने कहा कि यह “मौजूदा व्यवस्था” है, तो पीठ ने टिप्पणी की, “आप (BCI) खुद को थोप रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि आप इस देश में एकमात्र प्राधिकरण हैं। तन्खा ने बताया कि एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में हितधारकों की एक समिति बनाई गई थी, जो एक वर्षीय और दो वर्षीय एलएलएम डिग्रियों को समकक्ष मानने के लिए रूपरेखा की सिफारिश करेगी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने मौजूदा कानूनी शिक्षा प्रणाली के तहत निचले स्तर पर भर्ती हो रहे न्यायिक अधिकारियों की गुणवत्ता पर असंतोष जताया।
पीएचडी, डिप्लोमा में भी हस्तक्षेप कर रही बीसीआई
वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, जो नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के संघ की ओर से पेश हुए, ने कहा कि BCI सिर्फ एलएलएम ही नहीं, बल्कि पीएचडी, डिप्लोमा में भी हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहा है। सिंघवी ने कहा, “BCI का उद्देश्य कानूनी पेशे में प्रवेश को नियंत्रित करना था। फिर एक कानून आया जो प्रवेश से संबंधित था। हम यह नहीं कह रहे कि दो वर्षीय कोर्स (LLM) को खत्म किया जाए, लेकिन क्या एक प्रैक्टिस कर रहा वकील दो साल का LLM करना चाहेगा या एक साल का?” सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) से जवाब मांगा और अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से इस मामले में सहयोग करने का अनुरोध किया। अदालत ने इसके बाद मामले की सुनवाई जुलाई में तय की।