
Supreme Court
Asset News: सुप्रीम कोर्ट के सभी 33 मौजूदा जजों ने सर्वसम्मति से अपनी संपत्तियों का विवरण सार्वजनिक रूप से सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय 1 अप्रैल की फुल कोर्ट मीटिंग में लिया गया, जो भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
न्यायपालिका में पारदर्शिता पर लंबे समय से चल रही बहस
अब तक, संपत्ति की घोषणा करना जजों की व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर था और इसे सार्वजनिक करने की कोई अनिवार्यता नहीं थी। लेकिन हालिया घटनाओं के कारण न्यायपालिका में जवाबदेही की मांग बढ़ी है। खासतौर पर, पिछले महीने दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के आरोपों के बाद न्यायपालिका में पारदर्शिता को लेकर बहस तेज हो गई थी। जस्टिस वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच चल रही है और उन्हें उनके मूल हाई कोर्ट (इलाहाबाद) भेज दिया गया है।
1997 से अब तक: न्यायिक संपत्ति घोषणा का इतिहास
- 1997: सुप्रीम कोर्ट ने “द रिस्टेटमेंट ऑफ़ वैल्यूज़ ऑफ़ जुडिशियल लाइफ” नामक प्रस्ताव अपनाया, जिसमें जजों को अपनी संपत्तियों और देनदारियों की जानकारी भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को देने के लिए कहा गया।
- 2009: न्यायपालिका में बढ़ती पारदर्शिता की मांग के बीच, सुप्रीम कोर्ट के फुल बेंच ने स्वैच्छिक संपत्ति घोषणा को मंजूरी दी, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया।
- 2010: सुप्रीम कोर्ट ने RTI एक्ट के तहत संपत्ति विवरण की गोपनीयता बनाए रखने का निर्णय लिया, जब एक्टिविस्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट जजों की संपत्तियों की जानकारी सार्वजनिक करने की मांग की थी।
- 2019: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दोहराया कि जजों की संपत्ति का खुलासा केवल तभी किया जाएगा जब व्यापक सार्वजनिक हित की आवश्यकता होगी।
RTI और न्यायिक संपत्ति घोषणा पर विवाद
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के तहत न्यायिक पारदर्शिता की मांग बढ़ी। हालांकि, धारा 8(1)(j) के तहत निजी जानकारी को तब तक सार्वजनिक करने से छूट दी गई, जब तक यह “जनहित में आवश्यक” न हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह तर्क दिया कि संपत्ति का खुलासा गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन कर सकता है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों को अपनी संपत्ति घोषित करनी होती है, तो फिर जजों को क्यों छूट दी जाए?
संसदीय समिति की सिफारिशें और सरकार का रुख
2023 में, संसदीय स्थायी समिति ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के लिए संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा को अनिवार्य बनाने की सिफारिश की थी। नवंबर 2024 में, सरकार ने राज्यसभा को सूचित किया कि ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है कि जजों को अपनी संपत्तियां सार्वजनिक रूप से घोषित करने के लिए बाध्य किया जाए। मार्च 2025 में, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की एक आंतरिक समिति ने संपत्ति की स्वैच्छिक घोषणा को सही ठहराया और 2019 की संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया।
अब क्या बदलेगा?
सभी मौजूदा और भविष्य के सुप्रीम कोर्ट जजों को अपनी संपत्ति का विवरण सार्वजनिक करना होगा। यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध होगी। यह निर्णय न्यायपालिका की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ाने में मदद करेगा। सुप्रीम कोर्ट का यह कदम न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में ऐतिहासिक है। हालांकि, इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने के लिए अभी भी कोई संवैधानिक या विधायी प्रावधान नहीं है। अब देखना होगा कि हाई कोर्ट के जज भी इस पहल का अनुसरण करते हैं या नहीं।