
Supreme Court Chief Justice BR Gavai
ARBITRATION-TECHNOLOGY: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने कहा है कि न्यायिक फैसलों में टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल इंसानी सोच की जगह नहीं ले सकता।
भारतीय न्याय व्यवस्था में टेक्नोलॉजी की भूमिका” विषय पर सेमीनार
लंदन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (SOAS) में “भारतीय न्याय व्यवस्था में टेक्नोलॉजी की भूमिका” विषय पर बोलते हुए CJI गवई ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका ऑटोमेटेड कॉज लिस्ट, डिजिटल कियोस्क और वर्चुअल असिस्टेंट जैसे इनोवेशन को अपनाने के लिए तैयार है, लेकिन इसके साथ ही इंसानी निगरानी, नैतिक दिशा-निर्देश और मजबूत ट्रेनिंग भी जरूरी है। टेक्नोलॉजी का मकसद इंसाफ की प्रक्रिया को बेहतर बनाना होना चाहिए, न कि इंसानी विवेक को हटाना। उन्होंने कहा कि संवेदना, विवेक और न्यायिक व्याख्या की अहमियत को कोई तकनीक नहीं बदल सकती।
AI के इस्तेमाल में सावधानी जरूरी
CJI ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के रिसर्च एंड प्लानिंग सेंटर के साथ मिलकर उन्होंने एआई और उभरती तकनीकों के नैतिक इस्तेमाल पर एक विस्तृत नोट तैयार करने की पहल की है। उन्होंने कहा कि एआई का इस्तेमाल केस मैनेजमेंट, लीगल रिसर्च, डॉक्युमेंट ट्रांसलेशन और प्रिडिक्टिव एनालिटिक्स जैसे कामों में हो रहा है, लेकिन इसके साथ ही सावधानी भी जरूरी है।
किसी अपराध पीड़ित की पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए
सीजेआई ने बताया कि दुनियाभर में एआई के नैतिक इस्तेमाल को लेकर बहस चल रही है। इसमें एल्गोरिदमिक बायस, गलत जानकारी, डेटा में हेरफेर और गोपनीयता के उल्लंघन जैसे मुद्दे शामिल हैं। उन्होंने चेताया कि एआई की गलती या स्पष्ट प्रोटोकॉल की कमी के कारण किसी अपराध पीड़ित की पहचान उजागर नहीं होनी चाहिए।
संविधान और संवेदना के साथ जुड़ी टेक्नोलॉजी से मिलेगा न्याय
CJI गवई ने कहा कि अगर टेक्नोलॉजी को संवैधानिक मूल्यों और संवेदना के साथ जोड़ा जाए, तो यह न्याय तक पहुंच को एक आदर्श से हकीकत में बदल सकती है। उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल लोगों के केंद्र में रहकर, समावेशी और नैतिक स्पष्टता के साथ होना चाहिए। इसका मकसद हर नागरिक को न्याय सुलभ कराना होना चाहिए, चाहे उसकी भाषा, स्थान, आय या डिजिटल साक्षरता कुछ भी हो।
न्याय सिर्फ अदालतों की जिम्मेदारी नहीं
CJI ने कहा कि न्याय तक पहुंच केवल न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है। यह एक साझा राष्ट्रीय संकल्प है। लॉ स्कूल, सिविल सोसाइटी, लीगल-एड संस्थाएं और सरकारें मिलकर ऐसे टेक्नोलॉजिकल मॉडल विकसित करें जो पारदर्शी, समावेशी और सुलभ हों।
आर्बिट्रेशन से बदली है न्याय की तस्वीर
लंदन इंटरनेशनल डिस्प्यूट्स वीक के मौके पर सिंगापुर इंटरनेशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (SIAC) और त्रिलिगल के संयुक्त कार्यक्रम में CJI गवई ने कहा कि पिछले कुछ दशकों में न्यायिक प्रक्रिया कोर्टरूम की सीमाओं से बाहर निकलकर वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) की ओर बढ़ी है। इसमें आर्बिट्रेशन एक मजबूत स्तंभ बनकर उभरा है। उन्होंने कहा कि जटिल कारोबारी विवादों में न्याय प्रक्रिया को अब टकराव या नौकरशाही से जोड़कर नहीं देखा जाता, बल्कि इसे गोपनीय, विशेषज्ञ-आधारित और जरूरतों के अनुसार ढाला गया माना जाता है। आर्बिट्रेशन इसी सोच का हिस्सा है।
भारत ने आर्बिट्रेशन को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए
CJI ने बताया कि पिछले 10-15 वर्षों में भारत ने आर्बिट्रेशन को बढ़ावा देने के लिए कई स्तरों पर प्रयास किए हैं। कानूनों में सुधार हुए हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी कई प्रगतिशील फैसले दिए हैं। हालांकि, भारत जैसे बड़े देश में कुछ जमीनी चुनौतियां अब भी बनी हुई हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय न्यायपालिका आर्बिट्रेशन की स्वायत्तता को मान्यता देती है और तभी हस्तक्षेप करती है जब न्याय की जरूरत हो।
SIAC के नए नियम भारत के लिए अवसर और चुनौती
CJI गवई ने कहा कि SIAC के सातवें संस्करण के नियम भविष्य की ओर बढ़ने वाला कदम हैं। ये नियम पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ प्रक्रिया को और प्रभावी बनाते हैं। भारत के लिए ये नियम एक अवसर हैं कि वह अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप खुद को ढाले और एक चुनौती भी कि वह अपने व्यावहारिक हालात के साथ संतुलन बनाए रखे।