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Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर 5 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है।
वादकारी अदालतों के प्रति आक्रामक होते जा रहे हैं
जस्टिस जे. जे. मुनीर ने आदेश पारित करते हुए कहा कि आजकल वादकारी अदालतों के प्रति आक्रामक होते जा रहे हैं, क्योंकि अदालतें अवमानना की शक्तियों का इस्तेमाल करने से बच रही हैं। उन्होंने कहा कि नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए अदालतें संयम बरतती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जजों पर बिना आधार के आपत्तिजनक आरोप लगाए जाएं।
प्रिसाइडिंग ऑफिसर के खिलाफ याचिका
हाईकोर्ट में यह याचिका एक प्रिसाइडिंग ऑफिसर के खिलाफ पक्षपात के आरोप लगाकर केस ट्रांसफर की मांग को लेकर दायर की गई थी। कोर्ट ने कहा कि आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं है और इस तरह के बेबुनियाद आरोप न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाते हैं।
यह था मामला
यह मामला उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 के तहत एक आवेदन को बरेली के अतिरिक्त आयुक्त (न्यायिक) तृतीय से किसी अन्य अदालत में ट्रांसफर करने की मांग से जुड़ा था। याचिकाकर्ता ने प्रिसाइडिंग ऑफिसर और प्रतिवादी के बीच मिलीभगत का आरोप लगाया था। उसने सुनवाई में देरी और बार-बार स्थगन को पक्षपात का आधार बताया।
कोर्ट ने कहा- आरोप निंदनीय और बेबुनियाद
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि लगाए गए आरोप “पूरी तरह से निंदनीय” हैं और इनके समर्थन में कोई सबूत नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कोई गलत आदेश या प्रक्रिया पक्षपात का प्रमाण नहीं हो सकती। इसी तरह, सुनवाई में देरी को भी पक्षपात का आधार नहीं माना जा सकता।
न्यायिक प्रणाली पर आरोप लगाने से पहले जिम्मेदारी जरूरी
कोर्ट ने यह भी कहा कि न्यायिक मिलीभगत जैसे आरोप लगाने के लिए उच्च स्तर की जिम्मेदारी और ठोस सबूत जरूरी होते हैं। बिना आधार के ऐसे आरोप लगाना न केवल अनुचित है, बल्कि यह न्यायपालिका की गरिमा को भी नुकसान पहुंचाता है।