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Supreme Court News: बिहार पुलिस की पुलिस उपाधीक्षक ने आईपीएस अधिकारी पर शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म करने के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उसने पटना हाईकोर्ट के संबंधित मामले में दिए आदेश के खिलाफ अपील की।
पटना हाईकोर्ट ने केस रद्द करने का दिया है आदेश
न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ पुलिस उपाधीक्षक (डिप्टी एसपी) द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर सकती है। पटना हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिसने एक आईपीएस अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी को रद्द कर दिया था, जिस पर उसने शादी का झूठा वादा करने के बाद उसके साथ दुष्कर्म करने का आरोप लगाया था।
29 दिसंबर 2014 को महिला अधिकारी ने कराई थी एफआईआर
महिला अधिकारी की शिकायत पर 29 दिसंबर 2014 को बिहार के कैमूर के महिला पुलिस स्टेशन में आईपीएस अधिकारी, पुष्कर आनंद और उनके माता-पिता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी। जबकि आनंद पर बलात्कार और आपराधिक धमकी जैसे गंभीर अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया था, उसके माता-पिता पर अपराध को बढ़ावा देने के लिए मामला दर्ज किया गया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि भभुआ में डिप्टी एसपी के रूप में शामिल होने के दो दिन बाद, आनंद, जो कि एसपी थे, ने सोशल मीडिया के माध्यम से उनके प्रति दोस्ताना भाव दिखाना शुरू कर दिया। उसने कथित तौर पर उससे शादी करने की इच्छा जताई, उसने भी ऐसा किया और दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए। महिला ने कहा, हालांकि, उनकी कुंडली मेल नहीं खाने के कारण शादी नहीं हो पाई।
19 सितंबर 2024 को पटना हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती
अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे द्वारा दायर याचिका में कहा कि 19 सितंबर, 2024 को पारित उच्च न्यायालय का आदेश विकृत, किसी भी कानूनी गुण से रहित, मामले के तथ्यों से परे और स्थापित कानून के विपरीत है। कहा कि पटना हाईकोर्ट इस बात को समझने में विफल रहा कि अपराध के समय प्रतिवादी नंबर 2 (आईपीएस अधिकारी) को पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात किया गया था और याचिकाकर्ता को उसके अधीनस्थ अधिकारी के रूप में तैनात किया गया था। इस प्रकार, प्रतिवादी नंबर 2 के पास अपने अधीनस्थ अधिकारी यानी याचिकाकर्ता को प्रभावित करने की शक्ति और अधिकार था और एक प्राधिकारी होने के नाते, उसने अपराध किया और उससे शादी करने का आश्वासन भी दिया, जिसे बाद में उसने अस्पष्ट कारणों का हवाला देकर अस्वीकार कर दिया।
एफआईआर व आरोप पत्र पढ़ने से मामला है स्पष्ट: अधिवक्ता
अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे की याचिका में कहा कि पटना हाईकोर्ट इस बात को समझने में भी विफल रहा कि एफआईआर और आरोपपत्र को पढ़ने से यह स्थापित हो जाएगा कि विचाराधीन अपराध किया गया है और एफआईआर में दिए गए कथन प्रथम दृष्टया अपराध के घटित होने का खुलासा करते हैं। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि महिला काफी समय से आईएएस अधिकारी के साथ रिश्ते में थी और स्वेच्छा से उसके साथ रही और शारीरिक संबंध बनाए।