
Supreme Court View
AD HOC-JUDGES: सुप्रीम कोर्ट ने इस साल 30 जनवरी को देश के हाईकोर्ट्स को लंबित आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए रिटायर्ड जजों को एड-हॉक तौर पर नियुक्त करने की अनुमति दी थी।
किसी भी हाईकोर्ट ने कानून मंत्रालय को एक भी नाम नहीं भेजा
इसके बावजूद अब तक किसी भी हाईकोर्ट ने कानून मंत्रालय को एक भी नाम नहीं भेजा है। सरकार के पास मौजूद जानकारी के मुताबिक, 25 हाईकोर्ट्स में से किसी ने भी 11 जून तक कोई प्रस्ताव नहीं भेजा। देश में इस समय 18 लाख से ज्यादा आपराधिक केस लंबित हैं। इन्हें देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाईकोर्ट्स अपनी कुल स्वीकृत संख्या के 10% तक रिटायर्ड जजों को एड-हॉक तौर पर नियुक्त कर सकते हैं। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 224A का इस्तेमाल किया जा सकता है।
224A के तहत रिटायर्ड जजों की नियुक्ति का प्रावधान
अनुच्छेद 224A के अनुसार, किसी राज्य का हाईकोर्ट चीफ जस्टिस राष्ट्रपति की मंजूरी से किसी रिटायर्ड जज को दोबारा नियुक्त कर सकता है। यह नियुक्ति सीमित समय के लिए होती है और इसका उद्देश्य लंबित मामलों को तेजी से निपटाना होता है।
नियुक्ति की प्रक्रिया क्या है
हाईकोर्ट का कॉलेजियम पहले उम्मीदवारों के नाम कानून मंत्रालय को भेजता है। मंत्रालय इन नामों की जांच कर उन्हें सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजता है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम अंतिम फैसला लेकर सरकार को सिफारिश भेजता है। इसके बाद राष्ट्रपति नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर करते हैं। हालांकि, एड-हॉक जजों के मामले में राष्ट्रपति की सहमति ली जाती है, लेकिन वे नियुक्ति पत्र पर हस्ताक्षर नहीं करते।
2021 में सुप्रीम कोर्ट ने रखी थीं शर्तें
20 अप्रैल 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट्स में एड-हॉक जजों की नियुक्ति को लेकर कुछ शर्तें तय की थीं। इनमें एक शर्त यह थी कि अगर किसी हाईकोर्ट में 80% जज पहले से कार्यरत हैं, तो वहां एड-हॉक जज नहीं लगाए जा सकते। हालांकि, बाद में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कुछ शर्तों को अस्थायी रूप से हटा दिया। बेंच ने कहा था कि हर हाईकोर्ट में 2 से 5 एड-हॉक जज नियुक्त किए जा सकते हैं, लेकिन यह संख्या कुल स्वीकृत पदों के 10% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। ये जज हाईकोर्ट के किसी मौजूदा जज की अध्यक्षता वाली बेंच में बैठेंगे और लंबित आपराधिक अपीलों की सुनवाई करेंगे।
अब तक सिर्फ एक बार हुआ है ऐसा
अधिकारियों के मुताबिक, अब तक सिर्फ एक बार ही किसी हाईकोर्ट में रिटायर्ड जज को एड-हॉक तौर पर नियुक्त किया गया है। यानी यह प्रावधान बहुत कम इस्तेमाल हुआ है।