
Supreme Court India
ANTICIPATORY BAIL: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गंभीर अपराधों में एंटीसिपेटरी बेल (अग्रिम जमानत) मशीन की तरह नहीं दी जा सकती।
चार आरोपियों को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द किया
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, संजय करोल और संदीप मेहता की तीन जजों की बेंच ने 1 मई को दिए आदेश में कहा कि हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 302 और 307 जैसे गंभीर आरोपों वाले मामले में अग्रिम जमानत देते समय कोई ठोस कारण नहीं बताया। शीर्ष कोर्ट ने हत्या के एक मामले में पटना हाईकोर्ट द्वारा चार आरोपियों को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा, “हाईकोर्ट का आदेश बहुत संक्षिप्त है और उसमें न्यायिक विश्लेषण की कमी है। ऐसे गंभीर मामलों में इस तरह से बेल देना सही नहीं है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
यह था मामला
एफआईआर और अन्य दस्तावेजों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता के पिता की हत्या उसी की मौजूदगी में की गई थी। वह खुद ही इस मामले में शिकायतकर्ता भी है। झगड़ा रास्ता रोकने को लेकर हुआ था। एफआईआर में आरोपियों की भूमिका साफ तौर पर बताई गई है। इसमें कहा गया है कि मृतक के गिरने के बाद भी आरोपियों ने हमला जारी रखा।
हाईकोर्ट ने आरोपों की गंभीरता को नजरअंदाज किया
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट आरोपों की गंभीरता और प्रकृति को समझने में असफल रहा। इसलिए चारों आरोपियों को आठ हफ्तों के भीतर सरेंडर करने का निर्देश दिया गया है। पीड़ित के बेटे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर हाईकोर्ट के अग्रिम जमानत देने के फैसले को चुनौती दी थी।
2023 में हुआ था हमला
यह घटना 2023 में हुई थी। पड़ोसियों के बीच रास्ते को लेकर विवाद हुआ था। इसी दौरान पीड़ित पर लोहे की रॉड और डंडों से हमला किया गया। सिर में गंभीर चोट लगने के कारण उसी दिन उसकी मौत हो गई। इसके बाद अपीलकर्ता के बयान पर सात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी।