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Law Researchers: दिल्ली हाई कोर्ट में काम करने वाले कानून शोधकर्ताओं ने अपनी मासिक सैलरी ₹80,000 करने और अक्टूबर 2022 से लंबित बकाया भुगतान के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।
बकाया राशि पर 18% सालाना ब्याज की भी मांग की
याचिका में कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश द्वारा वेतन बढ़ाने का आदेश दिए जाने के बावजूद अब तक इसे लागू नहीं किया गया है। साथ ही उन्होंने बकाया राशि पर 18% सालाना ब्याज की भी मांग की है। याचिका में बताया गया है कि अनुच्छेद 229 के तहत दिल्ली हाईकोर्ट ने 1972 में एस्टेब्लिशमेंट रूल्स बनाए थे, जिसके तहत 367 सीनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट की पोस्ट बनाई गईं। इनमें से 120 पद कानून शोधकर्ताओं के लिए तय किए गए थे। यह मामला पिछले हफ्ते जस्टिस सी. हरिशंकर और जस्टिस अजय दिग्पाल की बेंच के सामने सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था। लेकिन जस्टिस दिग्पाल के खुद को इस मामले से अलग करने के बाद इसे दूसरी बेंच को सौंप दिया गया।
प्रस्ताव मंजूरी के बाद भी कार्रवाई नहीं होने पर जताई चिंता
सुनवाई के दौरान जस्टिस हरिशंकर ने माना कि कानून शोधकर्ता कई बार जजों से भी ज्यादा घंटे काम करते हैं और सुप्रीम कोर्ट में काम करने वाले शोधकर्ताओं को कहीं ज्यादा वेतन मिलता है। उन्होंने चिंता जताई कि प्रस्ताव को मंजूरी मिले दो साल हो चुके हैं, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि शोधकर्ताओं को उनके काम के लिए उचित मान्यता और वेतन मिलना चाहिए। कोर्ट की छुट्टियों के बाद यह मामला दूसरी बेंच को सौंपा गया है।
वेतन बढ़ोतरी का इतिहास
- शुरुआत में कानून शोधकर्ताओं को ₹25,000 प्रति माह वेतन मिलता था।
- अगस्त 2017 में इसे बढ़ाकर ₹35,000 किया गया।
- अगस्त 2018 में ₹50,000 और अगस्त 2019 में ₹65,000 किया गया।
- अक्टूबर 2022 में मुख्य न्यायाधीश ने ₹80,000 वेतन को मंजूरी दी।
सरकार की मंजूरी अब तक नहीं मिली
हालांकि मुख्य न्यायाधीश की मंजूरी के बावजूद यह प्रस्ताव अब तक दिल्ली सरकार के पास लंबित है। शोधकर्ताओं ने कई बार इसे लागू करने की मांग की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। नवंबर 2021 में केवल ₹35,000 से ₹65,000 तक की बढ़ोतरी को ही मंजूरी दी गई, जबकि पहले से स्वीकृत प्रस्तावों को नजरअंदाज कर दिया गया।
आरटीआई से सामने आई जानकारी
विलंब से परेशान होकर शोधकर्ताओं ने मार्च और अगस्त 2024 में आरटीआई दाखिल की। इसमें पता चला कि प्रस्ताव सितंबर 2023 में दिल्ली सरकार को भेजा गया था, लेकिन अब तक मंजूरी नहीं मिली। वित्त और कानून विभाग से जानकारी मांगी गई, लेकिन अधिकारियों ने आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(i) का हवाला देकर जानकारी देने से इनकार कर दिया। याचिका में कहा गया है कि प्रस्ताव भेजे जाने के लगभग दो साल बाद भी वेतन बढ़ोतरी लागू नहीं हुई है। मई 2024 में हाईकोर्ट द्वारा स्थिति स्पष्ट करने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश के स्पष्ट आदेश और संवैधानिक मंजूरी के बावजूद वेतन और बकाया भुगतान में देरी न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करती है।