
Burnt Currency Notes Found Outside Justice Varma's Residence... Courtesy: Agency
Judge’s Row 15: सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक समिति ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा को नकदी-जांच मामले में दोषी ठहराया है।
15 मई को स्टोररूम से जली हुई नकदी हटा दी गई थी
समिति ने कहा, जिस कमरे में जली हुई नकदी मिली, उस तक की पहुंच “न्यायाधीश और उनके परिवार के सक्रिय नियंत्रण” में थी। सूत्रों के अनुसार, पैनल ने कुछ ऐसे साक्ष्य पाए हैं, जिनसे संकेत मिलता है कि आग लगने की घटना सामने आने के बाद 15 मई को स्टोररूम से जली हुई नकदी हटा दी गई थी। इससे पहले, इस महीने की शुरुआत में तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को समिति की रिपोर्ट और न्यायमूर्ति वर्मा से प्राप्त उत्तर साझा किया था।
14 मार्च की रात 11.35 बजे जज के घर में लगी थी आग
सूत्रों ने बताया कि समिति ने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों सहित अन्य साक्ष्यों की जांच की और अपनी रिपोर्ट में माना कि आरोप इतने गंभीर हैं कि न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने की कार्यवाही शुरू की जा सकती है।पैनल ने साक्ष्यों का विश्लेषण किया और दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा और दिल्ली अग्निशमन सेवा प्रमुख समेत 50 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किए, जो 14 मार्च को रात 11:35 बजे न्यायमूर्ति वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास में आग लगने की घटना के पहले उत्तरदाता थे। उस समय न्यायमूर्ति वर्मा दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थे।
(RTI) के तहत समिति की रिपोर्ट की मांग वाली याचिका खारिज
न्यायमूर्ति वर्मा ने दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल को दिए गए अपने उत्तरों में बार-बार आरोपों से इनकार किया। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने सूचना के अधिकार अधिनियम (RTI) के तहत समिति की रिपोर्ट की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। RTI आवेदन में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश और राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के बीच इस मामले से संबंधित संवाद का भी खुलासा मांगा गया था।
यह है जज पर महाभियोग की सिफारिश की प्रक्रिया
इन-हाउस प्रक्रिया के तहत, जब न्यायाधीश को इस्तीफा देने की सलाह मान ली नहीं जाती, तो सीजेआई राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को महाभियोग की सिफारिश करता है। 8 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने बयान में कहा, “भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इन-हाउस प्रक्रिया के अनुसार भारत के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को 3 मई की तीन-सदस्यीय समिति की रिपोर्ट और 6 मई को न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा से प्राप्त पत्र/उत्तर की प्रतिलिपि भेजी है। समिति0 ने अपनी जांच रिपोर्ट में न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ नकदी-जांच के आरोपों की पुष्टि की थी, सूत्रों ने पहले ही कहा था।
3 मई को रिपोर्ट को दिया गया था अंतिम रुप
तीन सदस्यीय समिति में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति अनु शिवरामन शामिल थे। यह रिपोर्ट 3 मई को अंतिम रूप से तैयार हुई थी। सूत्रों ने यह भी बताया कि पूर्व सीजेआई खन्ना ने रिपोर्ट में आए गंभीर निष्कर्षों को देखते हुए न्यायमूर्ति वर्मा को पद छोड़ने के लिए प्रेरित किया था। यह रिपोर्ट न्यायमूर्ति वर्मा को उनके उत्तर के लिए भेजी गई थी ताकि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का पालन हो सके।
28 मार्च को शीर्ष अदालत ने जस्टिस वर्मा के काम पर लगाई थी रोक
नकदी-जांच मामले में एक समाचार रिपोर्ट के बाद विवाद खड़ा हुआ और इसके चलते कई कदम उठाए गए, जिनमें दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय द्वारा प्रारंभिक जांच, न्यायमूर्ति वर्मा से न्यायिक कामकाज वापस लिया जाना और बाद में उन्हें इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया जाना शामिल है, जहां उन्हें कोई न्यायिक काम नहीं सौंपा गया। 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजने की सिफारिश की थी। 28 मार्च को शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया था कि फिलहाल न्यायमूर्ति वर्मा को कोई न्यायिक काम न सौंपा जाए।