
Portrait of a beautiful Indian bride.
Stree Dhan News: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा, पति-पत्नी की संपत्तियों के वितरण और ‘स्त्रीधन’ की वापसी जैसे विवादों का निपटारा केवल हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की कार्यवाही के तहत ही किया जा सकता है।
पति ने एक मामले में हाईकोर्ट में दी थी चुनौती
न्यायमूर्ति अरिंदम सिन्हा और न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि स्त्रीधन की वापसी का मुद्दा अधिनियम की कार्यवाही में ही तय किया जाना चाहिए, न कि धारा 27 के तहत दायर किसी अलग आवेदन पर। इस मामले में पारिवारिक न्यायालय ने पति को पत्नी को ₹10,54,364/- का भुगतान करने का आदेश दिया था, जिसे पति ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी। दोनों पक्षों के विवाह को 1 मई, 2023 को भंग कर दिया गया था। पत्नी की अंतरिम भरण-पोषण याचिका पर पति ने पहले ही ₹7 लाख का भुगतान कर दिया था। पति के वकील ने तर्क दिया कि संपत्तियों का वितरण केवल तलाक की डिग्री में किया जा सकता है, और तलाक के आदेश में ऐसा कोई निर्देश नहीं था।
पत्नी की ओर से हाईकोर्ट में दी गई दलील
पत्नी की ओर से यह दलील दी गई कि पति पहले ही पुनर्विचार याचिका में असफल रह चुका है और अब अपील दायर कर रहा है, जो उचित नहीं है। इसके अलावा, पत्नी निष्पादन कार्यवाही भी चला रही थी। कोर्ट ने एफआईआर में पति पर लगाए गए आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पत्नी ने खुद स्वीकार किया था कि घटना के समय पति वहां मौजूद नहीं था। गहनों के बिलों की फोटोकॉपी के संबंध में भी कोर्ट ने कहा कि इसे पति प्रमाणित नहीं कर सकता, क्योंकि उसने न तो मूल बिल देखे थे और न ही इस लेनदेन का प्रत्यक्ष गवाह था। न्यायालय ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय ने पत्नी के बयान पर ध्यान नहीं दिया और पति के खिलाफ आरोपों को मान लिया।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले का भी समर्थन किया गया
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले का समर्थन करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 25 भरण-पोषण की मांग का प्रावधान करती है, जबकि धारा 27 के तहत संपत्ति के विवाद का निपटारा भी केवल तलाक की डिग्री में ही संभव है। चूंकि 1 मई, 2023 के तलाक आदेश में संपत्ति के संबंध में कोई निर्देश नहीं था, इसलिए पारिवारिक न्यायालय का आदेश रद्द किया गया। इस दौरान, छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के एक फैसले का हवाला भी दिया गया, जिसमें कहा गया था कि जब तक हिंदू विवाह अधिनियम की कार्यवाही लंबित न हो, न्यायालय धारा 27 के तहत स्वतंत्र आवेदन पर विचार नहीं कर सकता। इस प्रावधान का उद्देश्य मुकदमेबाजी की बहुलता को रोकना और पत्नी को उसी कार्यवाही में स्त्रीधन की वापसी के लिए आवेदन करने का अवसर देना है। कोर्ट ने यह भी कहा कि चूंकि अपीलकर्ता पति को अपील में सफलता मिली है और पत्नी को पहले ही ₹7 लाख अंतरिम भरण-पोषण व आंशिक निष्पादन में ₹2,10,000/- मिल चुके हैं, इसलिए निष्पादन कार्यवाही स्वतः समाप्त मानी जाएगी।