
Prisoner inside Jail....AI IMAGE
Posco News: सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में POCSO एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को जेल भेजने से इनकार कर दिया।
यह मामला सिस्टम की विफलता का उदाहरण: कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि यह मामला सिस्टम की विफलता का उदाहरण है और अब पीड़िता और उसके बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करना ही असली न्याय होगा। दोषी व्यक्ति ने पीड़िता से शादी कर ली है और दोनों का एक बच्चा भी है। यह मामला 2018 में पश्चिम बंगाल से जुड़ा है, जहां 14 साल की एक लड़की अपने घर से भागकर 25 साल के युवक के साथ रहने लगी थी। बाद में दोनों का एक बच्चा हुआ। युवक को POCSO एक्ट की धारा 6 और IPC की अन्य धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था।
कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
कलकत्ता हाईकोर्ट ने यह कहते हुए सजा रद्द कर दी थी कि दोनों के बीच सहमति से संबंध थे और अब वे एक परिवार हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए दोषी को फिर से सजा सुनाई, लेकिन जेल भेजने का आदेश नहीं दिया। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह फैसला सुनाया।
कोर्ट ने कहा
- “अब दोषी को जेल भेजना पीड़िता के लिए और अधिक मानसिक आघात का कारण बनेगा।”
- “कानून के अनुसार सजा देना जरूरी है, लेकिन इस मामले में समाज, परिवार और सिस्टम ने पहले ही पीड़िता के साथ अन्याय किया है।”
- “हम नहीं चाहते कि पीड़िता के पति को जेल भेजकर उसके जीवन में और कठिनाई बढ़े।”
पुनर्वास के लिए राज्य सरकार को निर्देश
कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिए कि पीड़िता और उसकी बेटी को पूरी आर्थिक और शैक्षणिक सहायता दी जाए। पीड़िता को स्कूल में दाखिला दिलाया जाए और यदि वह चाहें तो कॉलेज तक पढ़ाई की सुविधा दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला किसी भी अन्य मामले के लिए मिसाल नहीं बनेगा। कोर्ट ने इसे समाज और सिस्टम की पूरी विफलता का उदाहरण बताया।
यह भी दिए गए निर्देश
- बेटी की पोषण और शिक्षा की जिम्मेदारी मिशन वात्सल्य जैसी योजनाओं के तहत ली जाए।
- पीड़िता को स्कूल के बाद व्यावसायिक प्रशिक्षण और पार्ट-टाइम रोजगार की सुविधा दी जाए।
- परिवार के लिए बेहतर आवास की व्यवस्था की जाए और उनके कर्ज चुकाने में एनजीओ या सरकारी सहायता ली जाए।
सिस्टम की खामियों पर कोर्ट की टिप्पणी
- कोर्ट द्वारा नियुक्त पैनल की रिपोर्ट में बताया गया कि गांव स्तर की चाइल्ड प्रोटेक्शन कमेटियां ठीक से काम नहीं कर रही हैं।
- कन्याश्री प्रकल्प जैसी योजनाओं का सही क्रियान्वयन नहीं हुआ।
- चाइल्ड वेलफेयर पुलिस अफसरों की निष्क्रियता सामने आई।
- पीड़िता को न मुफ्त कानूनी सहायता मिली, न ही जेंडर-सेंसिटिव काउंसलिंग।
केंद्र सरकार को भी निर्देश
कोर्ट ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों और कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों की समिति के साथ मिलकर सिस्टम में सुधार के सुझाव तैयार करे। यह रिपोर्ट 25 जुलाई तक कोर्ट में पेश करनी होगी। यह फैसला न केवल एक कानूनी निर्णय है, बल्कि यह समाज और सिस्टम को आईना दिखाने वाला कदम भी है। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अब समय आ गया है कि हम किशोरों के अधिकार, बाल संरक्षण और सामाजिक जवाबदेही को गंभीरता से लें।