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Budget News: दिल्ली की सभी जिला अदालतों की वित्तीय सीमा (पेक्यूनियरी जुरिस्डिक्शन) को 2 करोड़ रुपए से बढ़ाकर कम से कम 20 करोड़ रुपए करने की मांग की गई है।
महंगाई और लेन-देन के बढ़ते मूल्य को लेकर कार्रवाई
यह मांग दिल्ली की सभी जिला अदालतों की बार एसोसिएशनों की कोऑर्डिनेशन कमेटी ने केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से की है। कमेटी ने कहा कि महंगाई और लेन-देन के बढ़ते मूल्य को देखते हुए यह बदलाव जरूरी हो गया है।
मंत्री ने जरूरी कदम उठाने का दिया आश्वासन
कमेटी के चेयरमैन नागेंद्र कुमार, प्रवक्ता नीरज और नई दिल्ली बार एसोसिएशन के मानद सचिव तरुण राणा ने शुक्रवार को कानून मंत्री से मुलाकात की और दिल्ली हाईकोर्ट एक्ट में संशोधन कर वित्तीय सीमा बढ़ाने की मांग रखी। राणा ने दावा किया कि मंत्री ने इस पर जरूरी कदम उठाने का आश्वासन दिया है।
2015 से लागू है 2 करोड़ की सीमा
कमेटी ने बताया कि 2015 से दिल्ली की जिला अदालतों को केवल 2 करोड़ रुपए तक के सिविल मामलों की सुनवाई का अधिकार है। इससे अधिक मूल्य के मामलों की सुनवाई हाईकोर्ट में होती है। लेकिन बीते वर्षों में महंगाई और लेन-देन के मूल्य में भारी बढ़ोतरी हुई है, जिससे अधिकतर मामले हाईकोर्ट में जा रहे हैं और जिला अदालतों में केस घट रहे हैं।
हाईकोर्ट पर बढ़ रहा बोझ, जिला अदालतों की क्षमता बढ़ी
कमेटी ने कहा कि हाईकोर्ट की क्षमता सीमित है, जबकि उसे आपराधिक, रिट और अपीलीय मामलों की सुनवाई भी करनी होती है। दूसरी ओर, जिला अदालतों की संख्या और क्षमता समय के साथ बढ़ी है। हाईकोर्ट में केसों की संख्या बढ़ने से लंबित मामलों की संख्या भी बढ़ रही है। कई बार तो सिर्फ बहस की प्रक्रिया पूरी होने में ही तीन साल से ज्यादा लग जाते हैं, जबकि जिला अदालतों में पूरा मामला तीन साल में निपटने की स्थिति में होता है।
न्याय में देरी से जनता को हो रही परेशानी
कमेटी ने कहा कि हाईकोर्ट में केसों की बढ़ती संख्या से न्याय मिलने में देरी हो रही है, जिससे आम जनता को परेशानी हो रही है और मुकदमेबाजी का उद्देश्य ही खत्म हो रहा है। अगर जिला अदालतों की वित्तीय सीमा बढ़ाई जाती है तो इससे हाईकोर्ट का बोझ कम होगा और न्याय प्रक्रिया तेज होगी।