
Punjab and Haryana High Court
CH Case: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शील नागू ने एक केस को सुनवाई कर चुके जज से वापस ले लिया है।
नई बेंच में सुनवाई
यह फैसला कुछ मौखिक और लिखित शिकायतें मिलने के बाद लिया गया। मुख्य न्यायाधीश ने इसे संस्थान के हित और संबंधित जज की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए जरूरी कदम बताया है। उन्होंने खुद इस केस की सुनवाई के लिए नई बेंच बनाई और 12 मई को इसे सूचीबद्ध किया।
एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी
यह मामला रूप बंसल नाम के व्यक्ति से जुड़ा है, जिसने हरियाणा एंटी करप्शन ब्यूरो द्वारा 17 अप्रैल को पंचकूला में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। इस याचिका पर सुनवाई जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु ने की थी और 2 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। लेकिन 8-9 मई को मुख्य न्यायाधीश को कुछ शिकायतें मिलीं, जिसके बाद उन्होंने 10 मई को प्रशासनिक आदेश जारी कर केस को जस्टिस सिंधु से वापस ले लिया।
याचिकाकर्ता के वकील ने जताई आपत्ति
वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी, जो याचिकाकर्ता के वकील हैं, ने इस फैसले पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि जब कोई बेंच केस की सुनवाई कर चुकी हो और फैसला सुरक्षित हो, तो वह केस किसी और बेंच को नहीं सौंपा जा सकता, चाहे वह मुख्य न्यायाधीश की बेंच ही क्यों न हो।
किसी भी बेंच को सौंपने या वापस लेने का पूरा अधिकार: कोर्ट
मुख्य न्यायाधीश के आदेश में कहा गया है कि मुख्य न्यायाधीश के पास केस किसी भी बेंच को सौंपने या वापस लेने का पूरा अधिकार है। यह अधिकार न्यायिक समीक्षा से परे है। यह कदम संस्थान की गरिमा और संबंधित जज की प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए उठाया गया। मुख्य न्यायाधीश ने सीमित समय में यह फैसला लिया, ताकि किसी भी तरह की और शर्मिंदगी से बचा जा सके। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि उन्होंने यह कदम नहीं उठाया होता, तो यह उनके शपथ और कर्तव्य के खिलाफ होता।
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि
- केस को वापस लेने का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता और गति बनाए रखना है।
- शिकायतें चाहे मौखिक हों या लिखित, यदि वे संस्थान की साख को प्रभावित कर सकती हैं, तो उस पर तुरंत कार्रवाई जरूरी होती है।
- ऐसे मामलों में मुख्य न्यायाधीश को सीमित समय में फैसला लेना होता है, ताकि न्यायपालिका में जनता का भरोसा बना रहे।
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी स्पष्ट किया कि
- केस को वापस लेने का निर्णय पूरी तरह से संस्थान के हित में लिया गया।
- यह फैसला किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं, बल्कि न्यायपालिका की साख को बचाने के लिए था।