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Muslim Law: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा, इस्लाम कुछ विशेष परिस्थितियों और शर्तों के अधीन बहुविवाह (एक से अधिक विवाह) की अनुमति देता है।
स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों” के लिए दुरुपयोग कर रहे
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने कहा कि प्रारंभिक इस्लामी काल में कुरान ने युद्धों के दौरान बड़ी संख्या में विधवाओं और अनाथों की रक्षा के उद्देश्य से सशर्त रूप से बहुविवाह की अनुमति दी थी। लेकिन अब पुरुष इस प्रावधान का “स्वार्थपूर्ण उद्देश्यों” के लिए दुरुपयोग कर रहे हैं। इस अनुमति का दुरुपयोग मुस्लिम कानून की मूल भावना के विरुद्ध किया जा रहा है। 8 मई को पारित अपने आदेश में अदालत ने मुस्लिम पुरुष द्वारा किए गए एक से अधिक विवाहों की वैधता और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 494 (द्विविवाह का अपराध) के तहत उसकी व्याख्या को स्पष्ट किया। अदालत ने प्रतिवादी को नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी भी जबरदस्ती कार्रवाई पर रोक लगा दी।
एक मुस्लिम पुरुष चार बार तक विवाह कर सकता है…
प्रतिकूल पक्ष संख्या 2 (पत्नी) ने FIR दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि फुरकान ने बिना अपनी पहली शादी की जानकारी दिए उससे विवाह किया और विवाह के दौरान बलात्कार भी किया। वहीं, फुरकान ने कहा कि शिकायतकर्ता ने स्वेच्छा से संबंध में आने के बाद उससे विवाह किया था। उनके वकील ने तर्क दिया कि IPC की धारा 494 के तहत कोई अपराध नहीं बनता, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल लॉ और शरीयत अधिनियम, 1937 के अनुसार एक मुस्लिम पुरुष चार बार तक विवाह कर सकता है।
तर्क…1937 का शरीयत अधिनियम एक विशेष अधिनियम है
याचिकाकर्ता के वकील ने यह भी तर्क दिया कि 1937 का शरीयत अधिनियम एक विशेष अधिनियम है, जबकि IPC सामान्य अधिनियम है, अतः विशेष अधिनियम को वरीयता दी जानी चाहिए। इसके अलावा, मुस्लिम कानून के अनुसार दूसरी शादी तभी अमान्य मानी जाती है जब पहली शादी मुस्लिम कानून के अनुसार न हुई हो। सरकारी अधिवक्ता (AGA) ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा कि हर दूसरी मुस्लिम शादी वैध नहीं होती, खासकर जब पहली शादी मुस्लिम कानून के तहत न होकर किसी विशेष अधिनियम या हिंदू कानून के तहत हुई हो, तो दूसरी शादी अमान्य मानी जाएगी और IPC की धारा 494 लागू होगी। इन तर्कों के आधार पर अदालत ने निकाह की अवधारणा और मुस्लिम पर्सनल लॉ का उल्लेख करते हुए कहा कि पति को बहुविवाह की अनुमति बिना शर्त नहीं दी गई है।
बहुविवाह का उद्देश्य केवल स्वार्थ या कामुकता हो, तो कुरान इसकी अनुमति नहीं देता
अदालत ने जाफर अब्बास केस का हवाला देते हुए कहा कि यदि बहुविवाह का उद्देश्य केवल स्वार्थ या कामुकता हो, तो कुरान इसकी अनुमति नहीं देता, और यह मौलवियों की जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि इस्लामी शिक्षाओं का दुरुपयोग न हो। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई कानून ऐसी दूसरी शादी को दंडनीय नहीं ठहराता, जब तक वह शरीयत के अनुसार ‘बातिल’ घोषित न की गई हो। यदि शादी निषिद्ध रिश्तों में की गई हो, तो वह शरीयत द्वारा बातिल घोषित की जा सकती है, लेकिन सवाल यह है कि ऐसी घोषणा कौन करेगा। इस मामले में अदालत ने माना कि दोनों पक्ष मुस्लिम हैं, और इसलिए याचिकाकर्ता की दूसरी शादी वैध मानी जाएगी तथा उसके खिलाफ ऊपर बताई गई धाराओं के तहत कोई अपराध नहीं बनता।
अदालत ने यह भी कहा
“इतिहास में एक समय ऐसा था जब अरबों की जातीय लड़ाइयों में बड़ी संख्या में महिलाएं विधवा और बच्चे अनाथ हो गए थे। उस समय मुसलमानों को मदीना में नवगठित इस्लामी समुदाय की रक्षा में भारी जानमाल की क्षति हुई थी। ऐसे में, कुरान ने अनाथों और उनकी माताओं की रक्षा के लिए सशर्त बहुविवाह की अनुमति दी थी।”
यह रहे अदालत के मुख्य बिंदु
- यदि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली शादी मुस्लिम कानून (शरीयत) के अनुसार करता है, तो उसकी दूसरी, तीसरी या चौथी शादी शून्य (void) नहीं मानी जाएगी। अतः IPC की धारा 494 उन पर लागू नहीं होगी, जब तक कि परिवार न्यायालय द्वारा दूसरी शादी को शरीयत के अनुसार ‘बातिल’ (अवैध) घोषित न किया गया हो।
- यदि पहली शादी विशेष विवाह अधिनियम, 1954, विदेशी विवाह अधिनियम, 1969, ईसाई विवाह अधिनियम, 1872, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 या हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत हुई है, और उसके बाद व्यक्ति इस्लाम धर्म अपना कर मुस्लिम कानून के अनुसार दूसरी शादी करता है, तो वह शादी अमान्य (void) मानी जाएगी और उस पर IPC की धारा 494 लागू होगी।
- यह आदेश फुरकान और दो अन्य व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया गया, जिसमें मुरादाबाद की अदालत द्वारा दर्ज चार्जशीट और समन आदेश को चुनौती दी गई थी। आरोपों में IPC की धारा 376 (बलात्कार), 495 (पहले विवाह को छिपाकर दूसरा विवाह करना), 120-बी (आपराधिक साजिश), 504 (अपमान) और 506 (आपराधिक धमकी) शामिल थीं।