
Supreme Court
SC News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882 (संपत्ति अंतरण अधिनियम), की धारा 10, जो संपत्ति के पूर्ण रूप से हस्तांतरण पर प्रतिबंध को अमान्य ठहराती है, वह सरकारी आवंटनों पर लागू नहीं होती।
तेलंगाना सरकार से संबंधित याचिका पर सुनवाई
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने एक मामले की सुनवाई की जिसमें तेलंगाना सरकार ने 2001 में मेडक ज़िले में एक ट्रस्ट को 3.01 एकड़ भूमि चैरिटेबल (धार्मिक/जनकल्याण) उद्देश्य से एक सरकारी आदेश के तहत आवंटित की थी। यह आवंटन कुछ शर्तों के अधीन था—जैसे कि भूमि का उपयोग केवल चैरिटेबल गतिविधियों के लिए किया जाना था और निर्माण दो वर्षों के भीतर पूरा किया जाना था। हालांकि, ट्रस्ट ने इन शर्तों का पालन न करते हुए भूमि को टुकड़ों में विभाजित कर निजी व्यक्तियों को बेच दिया और 2011 में एक फर्जी जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (GPA) के माध्यम से आवंटन की मूल शर्तों को छिपा लिया।
भूमि के पुन: अधिग्रहण के अधिकार को उचित ठहराया
न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि धारा 10 केवल inter vivos प्रकार के संपत्ति हस्तांतरण पर लागू होती है, न कि उन शर्तों पर आधारित हस्तांतरणों पर जो सरकार द्वारा किए गए आवंटनों के माध्यम से होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि ये लेन-देन न तो inter vivos (जीवित व्यक्तियों के बीच की निजी बिक्री) होते हैं और न ही वाणिज्यिक प्रकृति के, बल्कि ये सार्वजनिक हित में किए जाते हैं। इस आधार पर, न्यायालय ने तेलंगाना सरकार को भूमि उपयोग पर शर्तें लगाने और उनके उल्लंघन की स्थिति में भूमि को पुनः अधिग्रहित करने के अधिकार को उचित ठहराया, और उच्च न्यायालय के उस निर्णय को रद्द कर दिया जिसमें उसने उत्तरदाता (Respondent) को भूमि आवंटन को ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट के अंतर्गत की गई बिक्री माना था।
पुन: अधिग्रहण के आदेश केा हाईकोर्ट ने रद्द किया था
तेलंगाना सरकार ने 2012 में पुनः अधिग्रहण का आदेश जारी किया, जिसे 2022 में उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 10 का उल्लंघन है, जो संपत्ति के पूर्ण स्थानांतरण पर रोक को अमान्य ठहराती है। राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के निर्णय को निरस्त करते हुए, न्यायमूर्ति मनमोहन द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि सरकारी आवंटन निजी बिक्री नहीं होते, बल्कि व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए किए जाते हैं। इसलिए, उत्तरदाता-ट्रस्ट द्वारा आवंटन की शर्तों का उल्लंघन करने पर राज्य सरकार को भूमि को पुनः अधिग्रहित करने का अधिकार है, जैसा कि संबंधित वैधानिक भूमि नियमों के अंतर्गत प्रावधानित है, जो ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट से स्वतंत्र रूप से संचालित होते हैं और राज्य को ऐसी शर्तें लगाने एवं उन्हें लागू करने की शक्ति प्रदान करते हैं। इस प्रकार, न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया और यह रेखांकित किया कि जब राज्य सरकार सार्वजनिक हित में भूमि आवंटित करती है, तो वह आवंटन की शर्तों के उल्लंघन की स्थिति में पुनः अधिग्रहण का अधिकार रखती है, क्योंकि ऐसा आवंटन एक बिक्री की श्रेणी में नहीं आता।
न्यायालय ने टिप्पणी की
“यह न्यायालय इस मत पर है कि अपीलकर्ता-राज्य ने एक सार्वजनिक उद्देश्य हेतु एक सार्वजनिक ट्रस्ट को भूमि आवंटित की थी। ऐसी स्थिति में, राज्य को सामान्य निजी पक्षों के inter vivos स्थिति में नहीं रखा जा सकता, क्योंकि सार्वजनिक हित सर्वोपरि होता है और उसे ही प्राथमिकता मिलनी चाहिए। यह न्यायालय इस मत पर भी है कि 1975 के नियम और राजस्व बोर्ड के स्थायी आदेश (Standing Orders) पूरी तरह से एक पृथक क्षेत्र में संचालित होते हैं और ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट की धारा 10 से प्रभावित नहीं होते।”