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CHILD dispute: बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक पिता द्वारा अपनी पांच साल की बेटी को मां की कस्टडी से जबरन ले जाने को निंदनीय बताया है।
महिला द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई
न्यायमूर्ति कमल खता और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की अवकाश पीठ एक महिला द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण (व्यक्ति को पेश करो) याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दावा किया गया था कि उसके अलग रह रहे पति ने उसकी पांच साल की बेटी को जबरन उसके संरक्षण से छीन लिया है और उसे वापस देने से इनकार कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि माता-पिता के आपसी विवाद में बच्चे को शामिल करना गलत है और इससे बच्चे को मानसिक आघात पहुंचता है। कोर्ट ने पिता को तुरंत बच्ची को मां को सौंपने का आदेश दिया और कहा कि वह हर शनिवार को बेटी से मिल सकता है।
महिला द्वारा दायर हेबियस कॉर्पस याचिका से जुड़ा
यह मामला एक महिला द्वारा दायर हेबियस कॉर्पस याचिका से जुड़ा है। महिला ने आरोप लगाया था कि उसका अलग रह रहा पति उनकी बेटी को जबरन अपने साथ ले गया है और उसे वापस नहीं कर रहा। मंगलवार को कोर्ट के निर्देश पर पिता बुधवार को बच्ची के साथ कोर्ट में पेश हुआ। उसने दावा किया कि उसने बच्ची को जबरन नहीं ले जाया। हालांकि, कोर्ट ने पिता के इस व्यवहार पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा, यह निंदनीय है। सोचिए बच्ची पर क्या बीती होगी। रात में पिता ने बच्ची को मां या मौसी से छीन लिया और कह रहा है कि जबरदस्ती नहीं की। कोर्ट ने दोनों माता-पिता को सलाह दी कि वे अपने आपसी झगड़े में बच्ची को न घसीटें। कोर्ट ने कहा, “बच्चे को आप दोनों के झगड़े से दूर रखो।”
कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्देश
- पिता को बच्ची की कस्टडी तुरंत मां को सौंपने का आदेश।
- हर शनिवार को पिता को बेटी से मिलने की अनुमति।
- कोर्ट ने कहा- बच्ची को जबरन ले जाना निंदनीय, इससे उसे मानसिक आघात पहुंचा।