
Supreme-Court
CASHLESS TREATMENT: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह सड़क हादसों के शिकार लोगों के लिए बनाई गई कैशलेस इलाज योजना को पूरी गंभीरता और ईमानदारी से लागू करे।
अधिकतम 1.5 लाख रुपए तक का कैशलेस इलाज मिलना चाहिए
कोर्ट के न्यायमूर्ति अभय एस ओका व उज्जवल भुइयां की पीठ ने कहा कि इस योजना के तहत हर व्यक्ति को एक हादसे में अधिकतम 1.5 लाख रुपए तक का कैशलेस इलाज मिलना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र से अगस्त 2025 तक हलफनामा दाखिल कर यह बताने को कहा है कि इस योजना के तहत कितने लोगों को इलाज मिला। कोर्ट ने कहा, “हम केंद्र सरकार को निर्देश देते हैं कि वह इस योजना को उसके असली उद्देश्य और भावना के अनुसार लागू करे।” यह योजना 5 मई से लागू हो चुकी है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, “मोटर वाहन से हुए किसी भी सड़क हादसे में घायल व्यक्ति को इस योजना के तहत कैशलेस इलाज का हक होगा।”
जनवरी से अब तक नहीं बनी थी योजना, कोर्ट ने जताई नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट ने 28 अप्रैल को केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी कि उसने 8 जनवरी के आदेश के बावजूद योजना नहीं बनाई और न ही समय बढ़ाने की मांग की। कोर्ट ने कहा था कि मोटर वाहन अधिनियम की धारा 164A को 1 अप्रैल 2022 से लागू किया गया था, लेकिन सरकार ने अब तक इसके तहत कोई योजना नहीं बनाई। कोर्ट ने कहा, “आप अदालत की अवमानना कर रहे हैं। आपने समय बढ़ाने की भी जहमत नहीं उठाई। क्या आप सच में आम आदमी की भलाई के लिए काम कर रहे हैं?” कोर्ट ने सरकार के लापरवाह रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि एक तरफ हाईवे बनाए जा रहे हैं, दूसरी तरफ हादसों के बाद ‘गोल्डन ऑवर’ में इलाज की सुविधा नहीं होने से लोग मर रहे हैं।
क्या है ‘गोल्डन ऑवर’?
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 2 (12-A) के अनुसार, ‘गोल्डन ऑवर’ वह एक घंटा होता है जब किसी गंभीर रूप से घायल व्यक्ति को समय पर इलाज मिलने से उसकी जान बचाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 8 जनवरी को केंद्र को निर्देश दिया था कि वह ‘गोल्डन ऑवर’ के दौरान कैशलेस इलाज की योजना बनाए।
योजना में देरी से जानें जा रही हैं
कोर्ट ने कहा कि हादसों के बाद तुरंत इलाज जरूरी होता है, लेकिन इलाज में देरी, पैसों की चिंता और प्रक्रियागत अड़चनों के कारण कई लोगों की जान चली जाती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए सरकार की जिम्मेदारी है कि वह ऐसी योजना बनाए।
बीमा कंपनियों को भी जिम्मेदारी
कोर्ट ने कहा कि कानून के अनुसार भारत में जनरल इंश्योरेंस करने वाली कंपनियों को सड़क हादसों के शिकार लोगों के इलाज का खर्च उठाना होगा, खासकर ‘गोल्डन ऑवर’ के दौरान। हालांकि यह प्रावधान 1 अप्रैल 2022 से लागू है, लेकिन सरकार ने अब तक इसे लागू नहीं किया था, इसलिए कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा।
योजना में 1.5 लाख रुपए और 7 दिन की सीमा
सरकार ने कोर्ट में एक ड्राफ्ट योजना पेश की थी, जिसमें इलाज की अधिकतम सीमा 1.5 लाख रुपए और 7 दिन तय की गई थी। लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह सीमा पर्याप्त नहीं है और इससे गंभीर मरीजों को पूरा इलाज नहीं मिल पाएगा।
हिट एंड रन मामलों में 921 दावे लंबित
कोर्ट को यह भी बताया गया कि जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (GIC) को हिट एंड रन मामलों में मुआवजा देने और एक पोर्टल बनाने की जिम्मेदारी दी गई है। यह पोर्टल दस्तावेज अपलोड करने, राज्यों को कमियों की जानकारी देने और दावों की प्रक्रिया को तेज करने के लिए है। कोर्ट ने पाया कि 31 जुलाई 2024 तक ऐसे 921 दावे दस्तावेजों की कमी के कारण लंबित हैं। कोर्ट ने GIC को निर्देश दिया कि वह दावेदारों से संपर्क कर यह समस्या जल्द सुलझाए।