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शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालतों का यह कर्तव्य नहीं है कि वे बिना किसी ठोस कारण के मीडिया रिपोर्टिंग को हटाएं, खासकर जब इससे सार्वजनिक बहस और निष्पक्षता प्रभावित होती हो।
विकिपीडिया का एक पेज हटाने का निर्देश हुआ कोर्ट आदेश रद्द
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें विकिमीडिया फाउंडेशन को विकिपीडिया का एक पेज हटाने का निर्देश दिया गया था। इस पेज में एएनआई द्वारा अमेरिका-स्थित इस गैर-लाभकारी संस्था के खिलाफ दायर एक मानहानि मुकदमे का विवरण था। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि किसी भी प्रणाली, जिसमें न्यायपालिका भी शामिल है, में सुधार के लिए खुली बहस आवश्यक है। बार एंड बेंच के अनुसार, न्यायमूर्ति भुइयाँ ने कहा, “मीडिया को यह बताना कि क्या हटाना है और क्या नहीं, यह अदालत का काम नहीं है। न्यायपालिका और मीडिया दोनों ही लोकतंत्र के आधार स्तंभ हैं, जो कि संविधान की बुनियादी विशेषता है। एक उदार लोकतंत्र के फलने-फूलने के लिए, इन दोनों को एक-दूसरे का पूरक बनना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मीडिया के पास ऐसे आदेशों को उपयुक्त प्रक्रिया के तहत चुनौती देने का अधिकार है। अदालत ने अंत में यह जोड़ा, प्रकाशन को टालने का आदेश दंडात्मक नहीं बल्कि एक निवारक उपाय होता है।
किसी भी प्रणाली में सुधार के लिए आत्मनिरीक्षण आवश्यक
पीठ ने इस बात पर जोर दिया कि अदालतों को हमेशा बहस और सार्वजनिक आलोचना के लिए खुला रहना चाहिए। अदालतों में लंबित मामलों पर भी जनता बहस कर सकती है। न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा, अदालतें एक सार्वजनिक और खुली संस्था होने के नाते, हमेशा सार्वजनिक टिप्पणियों, बहसों और आलोचनाओं के लिए खुली रहनी चाहिए। वास्तव में, अदालतों को रचनात्मक आलोचना और बहस का स्वागत करना चाहिए। पीठ ने आगे कहा, हर महत्वपूर्ण मुद्दे पर जनता और प्रेस द्वारा गंभीरता से बहस की जानी चाहिए, भले ही वह मुद्दा अदालत में लंबित ही क्यों न हो। उन्होंने यह भी कहा, किसी भी प्रणाली में सुधार के लिए आत्मनिरीक्षण आवश्यक है, और वह तभी संभव है जब खुले तौर पर बहस हो, भले ही वह बहस अदालत में लंबित मामलों पर ही क्यों न हो।
विकिमीडिया फाउंडेशन के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर
विवाद की शुरुआत तब हुई जब एएनआई समाचार एजेंसी ने विकिमीडिया फाउंडेशन के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया। दिल्ली हाई कोर्ट ने शुरुआत में एएनआई के पक्ष में फैसला देते हुए विकिपीडिया पर कुछ कथित मानहानि संबंधी टिप्पणियों को हटाने का आदेश दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को रद्द करते हुए कहा कि न्यायहित में अदालतों को न्यायिक कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग को टालने का अधिकार है। अदालत ने कहा, “ऐसे मामलों में, यह आवेदक पर निर्भर करता है कि वह यह साबित करे कि रिपोर्टिंग से लंबित ट्रायल को गंभीर और वास्तविक खतरा है, तभी प्रकाशन को टालने का आदेश उचित होगा। ऐसा आदेश केवल तभी पारित किया जाना चाहिए जब कार्यवाही की निष्पक्षता को वास्तविक और गंभीर खतरा हो। यह आदेश सीमित अवधि के लिए ही तब उचित होता है जब संतुलन का सिद्धांत अस्थायी रूप से प्रकाशन न करने के पक्ष में हो।”
सुप्रीम आदेश के मुख्य प्रभाव और विश्लेषण
- मीडिया की स्वतंत्रता को बल
यह निर्णय स्पष्ट रूप से मीडिया की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षण देता है। अदालत ने माना कि मीडिया को रिपोर्टिंग से रोका नहीं जाना चाहिए, जब तक कि उससे मुकदमे की निष्पक्षता पर गंभीर खतरा न हो।
प्रभाव: यह पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के लिए राहतकारी है, क्योंकि अब उन्हें “सब ज्यूडिस” (अदालत में विचाराधीन) मामलों पर रिपोर्टिंग से डरने की जरूरत नहीं है – बशर्ते वह रिपोर्टिंग तथ्यात्मक और संतुलित हो। - न्यायपालिका की पारदर्शिता को समर्थन
कोर्ट ने खुद को भी आलोचना और सार्वजनिक बहस के लिए खुला बताया। यह दर्शाता है कि न्यायपालिका अपनी प्रक्रियाओं को जनता की निगाह में पारदर्शी बनाए रखना चाहती है।
प्रभाव: यह रुख अदालतों की स्वीकार्यता और वैधता को बढ़ाता है। जब लोग अदालतों के कामकाज पर खुलकर चर्चा कर पाते हैं, तो न्यायपालिका में भरोसा मजबूत होता है। - “टेकडाउन कल्चर” पर रोक
दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश विकिपीडिया पेज हटवाने के लिए था — सुप्रीम कोर्ट ने उसे पलटकर यह संदेश दिया कि इंटरनेट से जानकारी मिटाना या दबाना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
प्रभाव: डिजिटल प्लेटफॉर्म्स (जैसे विकिपीडिया) की स्वतंत्रता बनी रहती है और यह एक मिसाल बनेगी कि कोर्ट केवल विशेष परिस्थितियों में ही सामग्री हटाने का आदेश दे सकती है। - स्थगित करने के आदेश की सीमाएं स्पष्ट कीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मीडिया रिपोर्टिंग को स्थगित करना (postpone करना) एक अस्थायी और अंतिम उपाय होना चाहिए — न कि एक सामान्य या पहले विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
प्रभाव: इससे यह सुनिश्चित होता है कि अदालतें मीडिया को तभी रोकें जब उसके पास ठोस, ठोस कारण हों, और यह अधिकार मनमाने तरीके से न इस्तेमाल हो।