
Supreme Court
ROHINGYA Case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अगर भारत में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थी विदेशी पाए जाते हैं, तो उन्हें देश से बाहर भेजना होगा।
यह कहा शीर्ष कोर्ट ने
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि अगर रोहिंग्या विदेशी हैं और विदेशी नागरिक अधिनियम (Foreigners Act) के तहत आते हैं, तो उन्हें उसी कानून के अनुसार डिपोर्ट किया जाएगा। यह टिप्पणी उस वक्त आई जब वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्विस और प्रशांत भूषण ने रोहिंग्या शरणार्थियों की ओर से राहत की मांग की। कोर्ट ने साफ किया कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) द्वारा जारी पहचान पत्र भारतीय कानून के तहत उन्हें कोई सुरक्षा नहीं देते।
कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों के पास UNHCR कार्ड थे
न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा, अगर वे विदेशी हैं और Foreigners Act के दायरे में आते हैं, तो उन्हें उसी के अनुसार निपटाया जाएगा।” कोर्ट ने इस मामले की अंतिम सुनवाई के लिए 31 जुलाई की तारीख तय की है। कोर्ट को बताया गया कि बुधवार रात कुछ रोहिंग्या शरणार्थियों को, जिनके पास UNHCR कार्ड थे, पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और डिपोर्ट कर दिया, जबकि गुरुवार को इस मामले की सुनवाई होनी थी।
UNHCR कार्ड का कोई कानूनी महत्व नहीं है: मेहता
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट के 8 अप्रैल 2021 के आदेश का हवाला दिया और कहा कि सरकार कानून के अनुसार ही डिपोर्टेशन की कार्रवाई कर रही है। गोंसाल्विस ने बुधवार रात की कार्रवाई को चौंकाने वाला और “न्यायालय के आदेशों की अवहेलना” बताया। इस पर मेहता ने कहा कि भारत शरणार्थी संधि (Refugee Convention) का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है, इसलिए UNHCR कार्ड का कोई कानूनी महत्व नहीं है।
यह कहा गया था वर्ष 2021 में
2021 के आदेश में कहा गया था कि संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत सभी व्यक्तियों को अधिकार प्राप्त हैं, चाहे वे नागरिक हों या नहीं। लेकिन देश में रहने या बसने का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को अनुच्छेद 19(1)(e) के तहत प्राप्त है। सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने कहा कि केवल Refugee Convention ही नहीं, बल्कि Genocide Convention भी देखी जानी चाहिए, जिसे भारत ने स्वीकार किया है।
अंतरिम आदेश देने की बजाय इस मामले की अंतिम सुनवाई करें: कोर्ट
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, बेहतर होगा कि हम कोई अंतरिम आदेश देने की बजाय इस मामले की अंतिम सुनवाई करें। अगर उन्हें यहां रहने का अधिकार है, तो उसे मान्यता दी जाए और अगर नहीं है, तो कानून के अनुसार डिपोर्ट किया जाए। जब गोंसाल्विस ने आगे डिपोर्टेशन की आशंका जताई, तो न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि सॉलिसिटर जनरल ने आश्वासन दिया है कि सभी कार्रवाई भारतीय कानून के अनुसार ही होगी।