
Supreme Court
PMLA case: सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून (PMLA) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की गिरफ्तारी और संपत्ति जब्ती की शक्तियों पर कहा, वे तय करें कि किन मुद्दों पर बहस होनी है।
याचिकाकर्ताओं द्वारा तैयार किए गए ड्राफ्ट मुद्दों पर असंतोष जताया
जस्टिस सूर्यकांत, उज्जल भुइयां और एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ईडी की गिरफ्तारी व संपत्ति जब्ती को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं द्वारा तैयार किए गए ड्राफ्ट मुद्दों पर असंतोष जताया और कहा कि उनके सहयोगी वकीलों को और बेहतर तैयारी करनी चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि अगस्त 2022 में जब इन पुनर्विचार याचिकाओं पर नोटिस जारी हुआ था, तब सिर्फ दो मुद्दों पर ही सुनवाई की बात कही गई थी। पहला- आरोपी को ईसीआईआर (ECIR) की कॉपी देना जरूरी है या नहीं और दूसरा- PMLA की धारा 24 के तहत सबूत देने की जिम्मेदारी आरोपी पर डालना कितना उचित है।
बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए मामला: सिब्बल
वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने कहा कि यह मामला बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए। कोर्ट ने इस पर अगली सुनवाई की तारीख 6 अगस्त तय की है और जरूरत पड़ी तो 7 अगस्त को भी सुनवाई जारी रहेगी। सिब्बल ने कोर्ट से अनुरोध किया कि सुनवाई से पहले प्रक्रिया से जुड़े मुद्दों पर एक और तारीख तय की जाए, ताकि किन सवालों पर बहस होनी है, यह साफ हो सके। इसके बाद कोर्ट ने 16 जुलाई को अगली प्रक्रिया संबंधी सुनवाई तय की।
कोर्ट ने दो बिंदुओं पर पुनर्विचार की जरूरत बताई थी
जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने PMLA के तहत ईडी को गिरफ्तारी, संपत्ति जब्ती, तलाशी और जब्ती की शक्तियों को सही ठहराया था। इसके बाद अगस्त 2022 में कोर्ट ने पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सहमति दी थी और दो बिंदुओं पर पुनर्विचार की जरूरत बताई थी।
मनी लॉन्ड्रिंग कोई सामान्य अपराध नहीं है: कोर्ट
कोर्ट ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग कोई सामान्य अपराध नहीं है, बल्कि यह वैश्विक वित्तीय व्यवस्था के लिए खतरा है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि ईडी के अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं माने जाएंगे और ईसीआईआर को एफआईआर के बराबर नहीं माना जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि हर मामले में ईसीआईआर की कॉपी देना जरूरी नहीं है, लेकिन गिरफ्तारी के समय आरोपी को गिरफ्तारी के कारण बताना जरूरी है।
PMLA की धारा 45, जो अपराध को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाती है
PMLA की धारा 45, जो अपराध को संज्ञेय और गैर-जमानती बनाती है और जमानत के लिए दोहरी शर्तें लगाती है, को भी कोर्ट ने उचित और गैर-मनमाना बताया था। यह मामला 200 से ज्यादा याचिकाओं से जुड़ा है, जिनमें PMLA की विभिन्न धाराओं को चुनौती दी गई है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक विरोधियों को परेशान करने के लिए करती है।