
Delhi metro train at station platform
DMRC-DAMEPL dispute: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (DMRC) को करीब 2,500 करोड़ रुपए लौटाने के मामले में रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की सब्सिडियरी DAMEPL और एक्सिस बैंक को एक हफ्ते का समय दिया है।
दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही है: सिंघवी
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा, अगर इस दौरान दोनों पक्ष आपसी समझौते से मामला सुलझा लेते हैं तो ठीक है, वरना कानून अपना रास्ता अपनाएगा। सुनवाई के दौरान एक्सिस बैंक की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने बताया कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही है। उन्होंने कहा कि अगर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि मध्यस्थ की भूमिका निभाएं, तो विवाद जल्दी सुलझ सकता है। बेंच ने वेंकटरमणि से कहा कि वे DAMEPL और एक्सिस बैंक के मैनेजिंग डायरेक्टर्स और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की जानकारी तैयार रखें। कोर्ट ने अगली सुनवाई 14 मई को तय की है।
पिछले साल अप्रैल में आया था सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- सुप्रीम कोर्ट ने 10 अप्रैल 2023 को अपने पुराने फैसले को पलटते हुए DAMEPL को DMRC को 2,500 करोड़ रुपए लौटाने का आदेश दिया था।
- इससे पहले 2017 में हुए एक मध्यस्थता फैसले में DMRC को करीब 8,000 करोड़ रुपए DAMEPL को देने का आदेश दिया गया था।
- इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में बरकरार रखा था, लेकिन DMRC की क्यूरेटिव पिटीशन पर 2023 में कोर्ट ने इसे पलट दिया।
DAMEPL ने 2012 में छोड़ा था एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो का संचालन
- DAMEPL ने दिल्ली एयरपोर्ट एक्सप्रेस मेट्रो लाइन का संचालन किया था, लेकिन 2012 में स्ट्रक्चरल खामियों का हवाला देकर कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया।
- इसके बाद कंपनी ने टर्मिनेशन फीस और अन्य खर्चों के लिए मध्यस्थता का सहारा लिया और 8,000 करोड़ रुपए की मांग की।
- एक्सिस बैंक इस मामले में एस्क्रो अकाउंट ऑपरेट कर रहा था, लेकिन अब उसे भी कोर्ट की अवमानना नोटिस मिला है।
कोर्ट ने कहा- फैसले का पालन जरूरी, वरना सख्त कार्रवाई होगी
- कोर्ट ने कहा कि जब एक बार फैसला हो चुका है तो उसका पालन करना जरूरी है।
- कोर्ट ने DAMEPL और एक्सिस बैंक से पूछा कि जब फैसला आ चुका है तो “आंख-मिचौली” क्यों खेली जा रही है?
- कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर आदेश का पालन नहीं हुआ तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
क्यूरेटिव पिटीशन पर फैसला पलटना दुर्लभ मामला
- सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पहले के फैसले से एक सार्वजनिक सेवा संस्था पर भारी आर्थिक बोझ पड़ा था, जो न्याय के साथ अन्याय था।
- कोर्ट ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला सही था और पहले के फैसले में हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं था।
- यह मामला इसलिए भी खास है क्योंकि वाणिज्यिक मामलों में सुप्रीम कोर्ट का अपने ही दो फैसलों को पलटना बहुत दुर्लभ होता है।