
Supreme Court
Law Rights: सुप्रीम कोर्ट ने एक संपत्ति विवाद में फैसला सुनाते हुए कहा कि कानून उनकी मदद करता है जो अपने अधिकारों के लिए सतर्क रहते हैं, न कि उन लोगों की जो अपने अधिकारों को लेकर लापरवाह होते हैं।
55.50 लाख रुपए में संपत्ति बेचने की बात हुई थी
मामला जुलाई 2007 में हुए एक बिक्री समझौते से जुड़ा है, जिसमें कुल 55.50 लाख रुपए में संपत्ति बेचने की बात हुई थी। खरीदार ने 20 लाख रुपए अग्रिम के रूप में दिए थे और बाकी राशि चार महीने में चुकानी थी। लेकिन तय समय में पूरी राशि नहीं दी गई, जिसके चलते विक्रेताओं ने अग्रिम राशि जब्त कर ली।
खरीदार तय शर्तें पूरी नहीं करता है तो अग्रिम राशि जब्त
शीर्ष कोर्ट ने बेंगलुरु की एक संपत्ति से जुड़े मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें खरीदार द्वारा दी गई 20 लाख रुपए की अग्रिम राशि की वापसी से इनकार किया गया था। अदालत ने कहा कि समझौते में स्पष्ट रूप से लिखा था कि अगर खरीदार तय शर्तें पूरी नहीं करता है तो अग्रिम राशि जब्त की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 20 लाख रुपए की यह राशि ‘अर्नेस्ट मनी’ यानी अनुबंध को पक्का करने के लिए दी गई थी, न कि सिर्फ एडवांस के रूप में।
हाईकोर्ट का फैसला पूरी तरह सही: शीर्ष कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले में कोई गलती या गैरकानूनी बात नहीं है, इसलिए उसे बरकरार रखा जाता है। कोर्ट ने यह भी दोहराया कि कानून उन्हीं की मदद करता है जो अपने अधिकारों के लिए समय पर और सही तरीके से कदम उठाते हैं। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि खरीदार ने न तो ट्रायल कोर्ट में और न ही हाईकोर्ट में अग्रिम राशि की वापसी के लिए वैकल्पिक मांग की। न ही उसने समझौते की शर्तें पूरी करने के लिए समय बढ़ाने की कोई मांग की। ऐसे में हाईकोर्ट का फैसला पूरी तरह सही था।
‘अर्नेस्ट मनी’ और ‘एडवांस मनी’ को लेकर शीर्ष कोर्ट की टिप्पणी
- कोर्ट ने कहा कि ‘एडवांस मनी’ वह राशि होती है जो किसी सौदे की कुल रकम का हिस्सा होती है और सौदा पूरा होने से पहले दी जाती है।
- वहीं ‘अर्नेस्ट मनी’ वह राशि होती है जो अनुबंध को पक्का करने के लिए दी जाती है। अगर सौदा पूरा नहीं होता तो यह राशि जब्त की जा सकती है।
- इस मामले में 20 लाख रुपए ‘अर्नेस्ट मनी’ थी, जो खरीदार की ओर से अनुबंध पूरा करने की गारंटी के रूप में दी गई थी।
यह रही सुप्रीम फैसले की अहम बातें
- खरीदार ने तय समय में बाकी राशि नहीं दी, न ही समय बढ़ाने की मांग की।
- समझौते में स्पष्ट था कि शर्तें पूरी न होने पर राशि जब्त की जा सकती है।
- विक्रेताओं ने कोई अनुचित या एकतरफा शर्त नहीं रखी थी।
- कोर्ट ने कहा कि खरीदार ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए जरूरी कदम नहीं उठाए।