
Bus and motorbike accident on the road...File Photo
Road Accident: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा, जब मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 162(2) लागू हुई, तब से दो साल से अधिक समय तक आप क्या कर रहे थे? कितने लोग इस दौरान मर गए? किसी न किसी को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी।
आदेश के बावजूद योजना लागू क्यों नहीं हुई: कोर्ट
शीर्ष कोर्ट ने कहा, सड़क हादसे को लेकर हम एक ही जवाब चाहते हैं – आप बड़े-बड़े राजमार्ग बना रहे हैं, लेकिन सड़क हादसों में घायल लोग सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की पीठ ने कहा, 8 जनवरी को दिए आदेश के बावजूद न सरकार ने समय पर योजना बनाई और न समय बढ़ाने की मांग की। शीर्ष कोर्ट ने सड़क हादसों के पीड़ितों के लिए कैशलेस इलाज योजना बनाने में देरी पर केंद्र को आड़े हाथों लिया है। कोर्ट ने कहा, मोटर वाहन अधिनियम की धारा 164ए को 1 अप्रैल 2022 से तीन वर्षों की अवधि के लिए लागू किया गया था, लेकिन केंद्र सरकार ने अब तक योजना नहीं बनाई। गौरतलब है, 2023 में देश में सड़क हादसों में 1.72 लाख लोगों की जान चली गई थी।
‘गोल्डन ऑवर’ इलाज के लिए कोई योजना नहीं है: पीठ
पीठ ने सरकार से कहा, “आपने अवमानना की है। तीन साल प्रावधान को लागू हुए हो गए। क्या आप सच में आम आदमी के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं? लोग सड़क हादसों में मर रहे हैं। ‘गोल्डन ऑवर’ (हादसे के बाद पहला घंटा) इलाज के लिए कोई योजना नहीं है। इतने हाईवे बनाने का क्या फायदा?’ वहीं, केंद्र सरकार ने बताया कि एक ड्राफ्ट स्कीम तैयार थी, लेकिन जनरल इंश्योरेंस काउंसिल ने कुछ आपत्तियां उठाई हैं। काउंसिल हादसे में शामिल वाहन के बीमा की स्थिति जांचने का अधिकार चाहती है। कोर्ट ने कहा, योजना एक हफ्ते में अधिसूचित की जाए और इसकी प्रति 9 मई तक कोर्ट में पेश की जाए। अगली सुनवाई 13 मई को होगी।
जनहित याचिका पर कोर्ट कर रही थी सुनवाई
कोर्ट एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सड़क दुर्घटना पीड़ितों को गोल्डन ऑवर के दौरान त्वरित सहायता प्रदान करने के लिए सरकार द्वारा लाई गई योजना के कार्यान्वयन की मांग की गई थी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए “गोल्डन ऑवर” (दुर्घटना के तुरंत बाद) के दौरान नकद रहित इलाज से संबंधित योजना को एक सप्ताह के भीतर अधिसूचित कर लागू कर दिया जाएगा। मंत्रालय के सचिव न्यायमूर्ति अभय एस ओका और एजी मसीह की पीठ के समक्ष आश्वासन दिया कि अप्रैल 2022 में लाई गई इस योजना से संबंधित प्रावधानों को अब अधिसूचित कर कार्यान्वित किया जाएगा। सुनवाई के दौरान, पीठ ने संबंधित मंत्रालय द्वारा इस योजना के कार्यान्वयन में “दो वर्ष से अधिक की देरी” पर असंतोष व्यक्त किया।
जीआईसी सहयोग नहीं कर रही तो किसी और को चुनें
मंत्रालय सचिव ने पीठ को बताया कि योजना के कार्यान्वयन में कुछ बाधाएं आ रही हैं। उन्होंने कहा कि जनरल इंश्योरेंस कंपनी (जीआईसी), जिसे पीड़ितों को भुगतान करने के लिए नियुक्त किया गया है, योजना के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न कर रही है। हालांकि, पीठ अधिकारियों के इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं दिखी। पीठ ने कहा, आप अपना कार्य जीआईसी जैसी किसी कंपनी को नहीं सौंप सकते। कृपया अधिनियम के प्रावधान देखें। यदि जीआईसी सहयोग नहीं कर रही है, तो किसी और को नियुक्त करें।
योजना को एक सप्ताह के भीतर अधिसूचित व लागू करने का दावा
मंत्रालय सचिव की दलीलें सुनने के बाद, अदालत ने आदेश रिकॉर्ड किया। इसमें मंत्रालय के उस आश्वासन को नोट किया गया कि सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए नकद रहित आपातकालीन इलाज की योजना को एक सप्ताह के भीतर अधिसूचित और लागू कर दिया जाएगा। अदालत ने अपने आदेश में उल्लेख किया, मंत्रालय के सचिव उपस्थित हुए और उन्होंने कहा कि सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए गोल्डन ऑवर इलाज योजना को लागू किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने यह भी दर्ज किया कि मंत्रालय के सचिव ने योजना के समय पर लागू नहीं हो पाने के लिए माफी मांगी।
जीआईसी ने कहा-सरकार को योजना कैसे बनानी है, बताएंगे
जीआईसी की ओर से पेश वकील से कोर्ट ने पूछा, “क्या अब हम सरकार को बताएंगे कि योजना कैसे बनानी है? क्योंकि शीर्ष कोर्ट में मंत्रालय के सचिव ने बताया कि GIC द्वारा उत्पन्न बाधाओं के कारण योजना लागू नहीं हो सकी। कोर्ट ने सरकार द्वारा इस योजना के कार्यान्वयन में GIC के हस्तक्षेप पर भी गंभीर नाराजगी जताई। यह देखने के लिए कि क्या मंत्रालय ने आज किए गए अपने वचन का पालन किया है।
“क्या आप आम आदमी के कल्याण के लिए सक्रिय हैं? ड्राफ्ट स्कीम कहां है? क्या आप इस विषय को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं? लोग सड़क दुर्घटनाओं में मर रहे हैं। गोल्डन ऑवर इलाज के लिए कोई योजना नहीं है। पहले तो आपको इसकी परवाह ही नहीं… क्या आप अपने ही कानून या अदालत के आदेशों की अनदेखी करने जा रहे हैं? दो साल से अधिक समय के लिए समय बढ़ाने के लिए आपने आवेदन क्यों नहीं किया?”
- न्यायमूर्ति अभय एस ओका की टिप्पणी