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Jaunpur case: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा तीन व्यक्तियों की दोषसिद्धि की समीक्षा और उसमें संशोधन की प्रक्रिया पूरी तरह से अवैध थी।
वह केवल किसी लिपिकीय या गणनात्मक त्रुटि को सुधारना न हो…
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 362 का हवाला देते हुए कहा कि और इलाहाबाद हाईकोर्ट के संबंधित आदेश को रद्द कर दिया गया। बताया कि यह प्रावधान स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी मामले में निर्णय और अंतिम आदेश पर हस्ताक्षर हो जाने के बाद, कोई भी अदालत उसे बदल या उसकी समीक्षा नहीं कर सकती, जब तक कि वह केवल किसी लिपिकीय या गणनात्मक त्रुटि को सुधारना न हो।
सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग अपीलें दायर की थीं
यह फैसला उस मामले में आया जिसमें शिकायतकर्ता ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग अपीलें दायर की थीं। एक आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में बरी किए जाने की याचिका भी दायर की थी। पीठ ने नोट किया कि मई 2018 में हाई कोर्ट ने तीनों आरोपियों की अपीलों को खारिज कर दिया था, जो कि निचली अदालत द्वारा धारा 302 (हत्या) के तहत उम्रकैद की सजा के खिलाफ दायर की गई थीं। लेकिन फरवरी 2019 में हाई कोर्ट ने अपने ही मई 2018 के फैसले को बदलते हुए, आरोपियों की याचिका पर उनकी सजा को धारा 304 भाग II (ग़ैर-इरादतन हत्या) में बदल दिया, जो कि हत्या नहीं मानी जाती। इस संशोधन के तहत एक आरोपी को 10 वर्ष की सजा और बाकी दो को पांच-पांच वर्ष की सजा दी गई।
जौनपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष आत्मसमर्पण करें
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह संशोधन CrPC की धारा 362 का उल्लंघन है और हाई कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पूरी तरह अवैध है। शिकायतकर्ता की अपीलें स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा, 8 फरवरी 2019 का आदेश अवैध है और इसे रद्द किया जाता है क्योंकि हाई कोर्ट को 21 मई 2018 के अपने फैसले की समीक्षा करने का अधिकार नहीं था। अदालत ने दोषियों को निर्देश दिया कि वे चार सप्ताह के भीतर जौनपुर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष आत्मसमर्पण करें, ताकि वे शेष सजा काट सकें। हालांकि, अदालत ने यह छूट दी कि यदि आरोपी 21 मई 2018 के फैसले के खिलाफ अपील दायर करना चाहते हैं, तो वह अपील अपने गुण-दोष के आधार पर विचार की जाएगी। रिकॉर्ड से यह स्पष्ट हुआ कि यह घटना दो परिवारों के बीच लंबे समय से चल रहे ज़मीन विवाद के कारण हुई थी, जिसमें आरोपियों ने एक व्यक्ति पर हमला किया, जिसकी मई 2012 में मृत्यु हो गई थी।
पीठ ने कहा
“हम यह समझने में असमर्थ हैं कि कैसे हाई कोर्ट ने CrPC की धारा 362 की स्पष्ट भाषा के बावजूद इस प्रकार की गलती की।”