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Allahabad HC: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तारी का कारण बताना अनिवार्य शर्त है।
मजिस्ट्रेट द्वारा 25 दिसंबर को पारित रिमांड आदेश को निरस्त किया
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा, “जब अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन स्थापित हो जाता है, तो अदालत का कर्तव्य है कि वह तत्काल आरोपी की रिहाई का आदेश दे। यह ज़मानत देने का आधार होगा, भले ही ज़मानत पर कानूनी प्रतिबंध मौजूद हों। इस महत्वपूर्ण फैसले में हाईकोर्ट ने रामपुर के एक मजिस्ट्रेट द्वारा 25 दिसंबर को पारित रिमांड आदेश को निरस्त कर दिया, यह कहते हुए कि याचिकाकर्ता को उसकी गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए गए थे।
जानकारी उसे उसकी समझ की भाषा में प्रभावी रूप से दी जाए
कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के आधार बताना संविधान के अनुच्छेद 22(1) की एक अनिवार्य आवश्यकता है। साथ ही यह मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि इस प्रावधान और अन्य अनिवार्य सुरक्षात्मक उपायों का पालन किया गया हो। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि गिरफ्तारी के आधार उस व्यक्ति को इस तरह से बताए जाने चाहिए जिससे उसे उन मूल तथ्यों की पर्याप्त जानकारी मिल सके, जो गिरफ्तारी के आधार बनते हैं, और वह जानकारी उसे उसकी समझ की भाषा में प्रभावी रूप से दी जाए। यह आदेश याचिकाकर्ता मंजीत सिंह द्वारा दायर रिट याचिका पर पारित किया गया।
गिरफ्तारी मेमो दिया गया जिसमें कई विवरण नहीं थे…
मंजीत सिंह के खिलाफ 15 फरवरी, 2024 को IPC की विभिन्न धाराओं धोखाधड़ी, धमकी, और शांति भंग करने से संबंधित (धारा 420, 467, 468, 469, 406, 504, 506) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी। गिरफ्तारी के तुरंत बाद, याचिकाकर्ता को 26 दिसंबर, 2024 को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया और “मुद्रित रिमांड आदेश” के जरिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता को धारा 47 बीएनएसएस के तहत अनिवार्य गिरफ्तारी के आधार नहीं बताए गए और केवल एक ऐसा गिरफ्तारी मेमो दिया गया जिसमें ये विवरण नहीं थे।
एफआईआर में लगे आरोपों की सच्चाई नहीं है…
कोर्ट ने कहा, जब किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने रिमांड के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट का कर्तव्य है कि वह यह सुनिश्चित करे कि अनुच्छेद 22(1) और अन्य अनिवार्य सुरक्षात्मक उपायों का पालन किया गया है या नहीं। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि याचिका का मुख्य मुद्दा एफआईआर में लगे आरोपों की सच्चाई नहीं है, बल्कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया और रिमांड की कार्यवाही में हुई प्रक्रियात्मक त्रुटियाँ हैं। उन्होंने यह भी कहा कि गिरफ्तारी के समय न तो गिरफ्तारी का कारण बताया गया और न ही लिखित रूप में उसके आधार याचिकाकर्ता को बताए गए, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत आवश्यक है। याचिका को स्वीकार करते हुए, हाईकोर्ट ने 9 अप्रैल, 2025 को पारित आदेश में 26 दिसंबर, 2024 का रिमांड आदेश रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी को निरस्त कर दिया।