
Person holding syringe
Vaccine Affect: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कोविड-19 वैक्सीन की पहली खुराक के दुष्प्रभावों के कारण विकलांगता होने का दावा करनेवाले याचिकाकर्ता दीवानी मुकदमा दायर कर सकते हैं।
टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव संबंधी याचिका पर सुनवाई
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका की सुनवाई के दौरान की, जिसमें टीकाकरण के बाद प्रतिकूल प्रभाव (AEFI), विशेष रूप से कोविड-19 टीकाकरण के संबंध में, प्रभावी समाधान हेतु उचित दिशा-निर्देश निर्धारित करने की मांग की गई थी। पीठ ने कहा, अगर आप यह याचिका यहीं लंबित रखते हैं, तो दस साल तक कुछ नहीं होगा। कम से कम अगर आप मुकदमा दायर करते हैं, तो कुछ जल्दी राहत मिल सकती है।
कोविड टीके से 100 प्रतिशत निचले अंगों की विकलांगता हो गई
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि व्यक्ति को कोविड वैक्सीन की पहली खुराक लेने के बाद टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभावों का सामना करना पड़ा और उसे 100 प्रतिशत निचले अंगों की विकलांगता हो गई। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, इसके लिए रिट याचिका कैसे दायर की जा सकती है? इसके लिए तो हर्जाने का मुकदमा दायर करें। वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पहले से ही इसी मुद्दे पर दो अलग-अलग याचिकाएं लंबित हैं, जिन पर समन्वयक पीठों ने नोटिस जारी किए हैं। कोर्ट ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता चाहे तो उसकी याचिका को पहले से लंबित याचिकाओं के साथ जोड़ दिया जाएगा।
दीवानी मुकदमा में तीन साल में कुछ राहत मिल सकती है..
पीठ ने यह भी कहा कि याचिका वर्षों तक सुप्रीम कोर्ट में लंबित रह सकती है और हो सकता है कि वह दस साल तक भी नहीं निपटे। वकील ने पीठ से एक सप्ताह का समय मांगा ताकि वह अपने मुवक्किल से इस पर चर्चा कर सके। पीठ ने टिप्पणी की, “कम से कम अगर आप दीवानी मुकदमा दायर करते हैं, तो एक साल, दो साल या तीन साल में कुछ राहत मिल सकती है। इसके बाद मामला एक सप्ताह बाद के लिए स्थगित कर दिया गया।
केंद्र व वैक्सीन निर्माता को निर्देश देने की मांग की गई थी…
याचिका में केंद्र सरकार और कोविशील्ड वैक्सीन के निर्माता, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को निर्देश देने की मांग की गई थी कि वे याचिकाकर्ता को एक विकलांग व्यक्ति के रूप में गरिमापूर्ण जीवन जीने की व्यवस्था सुनिश्चित करें। इसके अतिरिक्त, याचिका में उसके इलाज पर हुए चिकित्सा खर्चों की भरपाई और भविष्य में होने वाले चिकित्सा खर्चों की जिम्मेदारी लेने के निर्देश देने की भी मांग की गई थी। इसके अलावा, यदि याचिकाकर्ता की स्थिति असाध्य पाई जाती है, तो उसे शारीरिक विकलांगता के लिए मुआवजा देने की भी मांग की गई थी।