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Copyright Act: सुप्रीम कोर्ट ने कॉपीराइट एक्ट और डिजाइन्स एक्ट के बीच अंतर स्पष्ट करने के लिए एक रूपरेखा (framework) तय की है।
कॉपीराइट व डिजाइन्स अधिनियम एक दूसरे के पूरक
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने औद्योगिक डिजाइनों से संबंधित एक बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) मामले में कहा, रूपरेखा के बनाने से यह समझा जा सकेगा कि किस कार्य को कॉपीराइट अधिनियम के तहत सुरक्षा प्राप्त है और किसे डिजाइन अधिनियम के अंतर्गत संरक्षित किया जा सकता है। फैसले में कहा गया कि कॉपीराइट अधिनियम और डिज़ाइन्स अधिनियम अलग-अलग लेकिन एक-दूसरे के पूरक उद्देश्य को पूरा करते हैं। कलात्मक रचनाओं जैसे पेंटिंग्स और मूर्तियों को लंबी अवधि तक सुरक्षा प्रदान करना, जबकि उपयोगी व्यावसायिक डिज़ाइनों को सीमित समय तक सुरक्षा देना — यही विधायिका का उद्देश्य है।
यह मामला क्या था
Cryogas Equipment Private Limited और LNG Express India Private Limited ने Inox India Limited के खिलाफ गुजरात हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी अपील खारिज करते हुए हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और निचली अदालत को मामले की सुनवाई मेरिट के आधार पर आगे बढ़ाने को कहा। मामले में यह स्पष्ट करना था कि कब कोई कलात्मक कृति (artistic work) कॉपीराइट अधिनियम के तहत संरक्षण खो देती है और डिज़ाइन अधिनियम के अंतर्गत आने योग्य बन जाती है। विशेषकर जब वह औद्योगिक पैमाने पर उपयोग की जाती है।
दो-चरणीय परीक्षण (two-step analysis) की प्रक्रिया दी
सुप्रीम कोर्ट ने अंतर समझाने के लिए दो-चरणीय परीक्षण (two-step analysis) की प्रक्रिया दी। यदि डिज़ाइन का मुख्य उद्देश्य व्यावसायिक उपयोग है और वह पंजीकृत नहीं है, तो कॉपीराइट सुरक्षा समाप्त हो जाती है और वह डिज़ाइन्स एक्ट के अंतर्गत आ जाता है। पहला चरण में यह तय करना कि क्या वह कार्य एक मूल “कलात्मक कृति” है जिसे कॉपीराइट एक्ट की धारा 14 के तहत सुरक्षा प्राप्त है या वह एक “डिज़ाइन” है जो कलात्मक कृति से उत्पन्न हुआ है और औद्योगिक प्रक्रिया द्वारा लागू किया गया है। ऐसे में धारा 15 लागू होगी। दूसरा चरण में यदि वह कार्य कॉपीराइट के लिए अयोग्य ठहरता है, तो ‘फंक्शनल यूटिलिटी’ यानी कार्य की कार्यात्मक उपयोगिता की जांच की जाएगी। यह निर्धारित करने के लिए कि उसका मुख्य उद्देश्य सौंदर्यात्मक था या कार्यात्मक।
यह है कॉपीराइट अधिनियम की धारा 15
कॉपीराइट अधिनियम की धारा 15 यह कहती है कि यदि कोई डिज़ाइन, जिसे डिज़ाइन्स एक्ट के तहत पंजीकृत किया जा सकता था, लेकिन पंजीकृत नहीं किया गया और वह 50 से अधिक बार औद्योगिक प्रक्रिया द्वारा पुनरुत्पादित किया गया, तो उसका कॉपीराइट समाप्त हो जाता है।
जस्टिस सूर्यकांत द्वारा लिखे गए 56-पृष्ठीय निर्णय में कहा गया
हमने इस निर्णय के माध्यम से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि ‘कॉपीराइट’ और ‘डिज़ाइन’ के मिलन-बिंदु पर स्थित कार्यों के साथ कैसे व्यवहार किया जाए, जिससे बौद्धिक संपदा अधिकारों के क्रियान्वयन में एकरूपता और स्पष्टता सुनिश्चित हो सके। इस फैसले से न केवल कानूनी अस्पष्टता दूर हुई है, बल्कि भविष्य में कॉपीराइट और डिज़ाइन कानून के बीच टकराव की स्थिति को भी टालने में मदद मिलेगी।