
Supreme Court
Rape Case: सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों को सावधानी बरतने की सलाह दी और कहा कि इस तरह की अनुचित टिप्पणियों से बचना चाहिए।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक टिप्पणी की कड़ी आलोचना की
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की उस टिप्पणी की कड़ी आलोचना की जिसमें कहा गया था कि बलात्कार पीड़िता ने खुद मुसीबत को न्योता दिया। हाई कोर्ट ने कहा गया था कि महिला ने खुद को जोखिम में डाला, जिससे उसके साथ बलात्कार हुआ। न्यायमूर्ति गवई ने कहा, बेल देना न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करता है, लेकिन इस तरह की टिप्पणियां कि महिला ने खुद परेशानी को बुलावा दिया, पूरी तरह से अनुचित हैं। खासतौर पर जब यह बात न्यायाधीश की ओर से कही जा रही हो, तो और अधिक सावधानी जरूरी है।
26 मार्च को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश पर हो चुकी है टिप्पणी
दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में एक बलात्कार के आरोपी को जमानत देते हुए टिप्पणी की थी कि शिकायतकर्ता शराब पीने के बाद आरोपी के घर जाने के लिए राज़ी होकर खुद मुसीबत को बुलावा दिया। सुप्रीम कोर्ट इस विषय पर स्वतः संज्ञान लेते हुए एक अन्य मामले की सुनवाई कर रही थी, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा था कि एक नाबालिग बच्ची के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे की डोरी तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे घसीटने की कोशिश करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आता। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी करते हुए 26 मार्च को कहा था कि यह निर्णय “संवेदनशीलता की कमी” को दर्शाता है और उस आदेश पर रोक लगा दी थी। यह एक गंभीर मामला है और निर्णय देने वाले न्यायाधीश की ओर से पूरी तरह से असंवेदनशीलता दिखाई गई है।
We the Women of India संस्था ने रखे आदेश
इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने We the Women of India संस्था के माध्यम से मुख्य न्यायाधीश के समक्ष 17 मार्च के हाई कोर्ट आदेश को रखा, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और हाई कोर्ट में शामिल पक्षों को नोटिस जारी किया, और भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि तथा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सहायता मांगी। पीड़िता की मां ने भी हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
17 मार्च को कोर्ट ने आरोपों को संशोधित कर हल्की धाराओं में बदल दिया था
17 मार्च को दिए गए आदेश में, न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र ने दो आरोपियों के खिलाफ लगाए गए धारा 376 (बलात्कार) और POCSO एक्ट की धारा 18 (अपराध करने के प्रयास की सजा) के आरोपों को संशोधित कर हल्की धाराओं में बदल दिया। हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि आरोपी को IPC की धारा 354-B (कपड़े उतारने के इरादे से हमला या आपराधिक बल प्रयोग) और POCSO एक्ट की धारा 9/10 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत मुकदमा चलाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे घटनाक्रम पर गहरी चिंता जताई है और चार सप्ताह के लिए सुनवाई स्थगित की है।
हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया:
इस मामले में आरोप है कि पवन और आकाश ने पीड़िता के स्तनों को पकड़ा और आकाश ने उसके निचले वस्त्र को उतारने की कोशिश की, जिसकी डोरी भी तोड़ी और उसे पुलिया के नीचे घसीटने की कोशिश की, लेकिन गवाहों के हस्तक्षेप से वे भाग गए। ये तथ्य यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि आरोपियों ने बलात्कार करने का पक्का इरादा बना लिया था, क्योंकि इसके अलावा कोई और कार्यवाही उनके बलात्कार की मंशा को साबित नहीं करती।
भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा:
न्याय न केवल होना चाहिए, बल्कि होता हुआ भी दिखना चाहिए। आम नागरिक इस तरह के आदेशों को किस नजरिए से देखते हैं, इस पर भी विचार होना चाहिए।