
Supreme Court
SC News: सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति विवाद से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, जिसमें एक गोदनामा (adoption deed) को अमान्य करार दिया गया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के 11 दिसंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह गोदनामा एक सोची-समझी चाल थी, जिससे बेटियों को उनके पिता की संपत्ति में कानूनी अधिकार से वंचित किया जा सके। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कुमार की याचिका को खारिज कर दिया, जो इलाहाबाद हाईकोर्ट के 11 दिसंबर 2024 के आदेश को चुनौती देने के लिए दाखिल की गई थी। हाईकोर्ट ने 9 अगस्त 1967 के गोदनामे को अस्वीकार कर दिया था, क्योंकि इसमें गोद लेने की अनिवार्य कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया था। हाईकोर्ट ने भी यह स्पष्ट किया था कि गोद लेने वाले पुरुष की पत्नी ने गोदनामा पर हस्ताक्षर नहीं किए। प्रस्तुत फोटोग्राफ्स से यह सिद्ध नहीं होता कि उन्होंने समारोह में भाग लिया। एक गवाह ने तो फोटोग्राफ में उन्हें पहचाना तक नहीं। इसके अलावा, हाईकोर्ट ने कहा कोई कारण नहीं है कि बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के विचारशील आदेश में हस्तक्षेप किया जाए, क्योंकि वैध गोद लेने की अनिवार्य शर्तों का पालन नहीं किया गया।
यह है मामले का संक्षिप्त विवरण
शिव कुमारी देवी और हरमुनिया, उत्तर प्रदेश निवासी स्वर्गीय भुनेश्वर सिंह की बेटियां हैं। याचिकाकर्ता अशोक कुमार ने दावा किया था कि उन्हें भुनेश्वर सिंह ने उनके जैविक पिता सूबेदार सिंह से एक विधिवत समारोह में गोद लिया था, और इसका एक फोटोग्राफ भी अदालत में प्रस्तुत किया गया था। अशोक कुमार ने भुनेश्वर सिंह की संपत्ति में उत्तराधिकार का दावा किया।
बेटियों की ओर से कोर्ट में दी गई दलील
बेटियों के वकील ने दलील दी कि गोदनामा ‘मेन्टेनेंस और एडॉप्शन एक्ट 1956’ के तहत निर्धारित शर्तों के अनुसार सिद्ध किया जाना चाहिए, जिसमें यह आवश्यक है कि गोद लेने वाले पुरुष की पत्नी की सहमति हो और गोद लेने की विधिवत रस्म का प्रमाण हो। शीर्ष कोर्ट ने यह भी कहा कि न तो गोद लेने की प्रक्रिया के समय पत्नी की सहमति थी और न ही कोई ठोस प्रमाण था कि “गोद देने और लेने” की विधिवत रस्म (ceremony of giving and taking) संपन्न हुई थी। इस मामले में न तो गोद लेने वाली मां के हस्ताक्षर गोदनामे पर हैं, न ही वह उसके पंजीकरण के समय उपस्थित थीं। गोद लेने वाले पिता ने तो पालकी में बैठकर ही अपनी सहमति दे दी थी। इस प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि गोदनामा केवल संपत्ति हड़पने के लिए तैयार किया गया था और बेटियों के वैध उत्तराधिकार के अधिकार को समाप्त करने की मंशा से प्रेरित था। कोर्ट ने इस तरह की अनैतिक और अवैध प्रथा पर कड़ी टिप्पणी करते हुए इसे खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा
हमने याचिकाकर्ता के वरिष्ठ वकील को विस्तृत रूप से सुना और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री का सावधानीपूर्वक परीक्षण किया। हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि 9 अगस्त 1967 का गोदनामा सिर्फ इस उद्देश्य से बनाया गया था ताकि शिव कुमारी और उनकी बड़ी बहन हरमुनिया को उनके पिता की संपत्ति से वंचित किया जा सके।
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा
हमें पता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बेटियों को संपत्ति से वंचित करने के लिए इस तरह के तरीकों को अपनाया जाता है। हम जानते हैं कि ऐसे गोद लेने की प्रक्रियाएं किस तरह की जाती हैं। हाईकोर्ट ने गोदनामे को खारिज कर सही निर्णय लिया है।