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Court News: दिल्ली की एक अदालत के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने धोखाधड़ी और अवैध हथियारों से संबंधित एक मामले में आरोपी गुरमीत सिंह बावा के पक्ष में पारित आदेश को खारिज करते हुए कहा, आरोपी का बरी किया जाना न्याय की घोर विफलता है।
राज्य सरकार ने बरी के फैसले के खिलाफ की थी अपील
राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए अदालत ने साक्ष्यों की समीक्षा करते हुए कहा, मजिस्ट्रेट अदालत ने गलत तरीके से यह मान लिया कि बावा के खिलाफ झूठी पहचान, जालसाजी और धोखाधड़ी के आरोप साबित नहीं हुए। फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला की रिपोर्ट का हवाला देते हुए अदालत ने कहा, बावा ही नकली राशन कार्ड और पासपोर्ट आवेदन पत्र का लेखक था।
प्रणभ जैन के रूप में झूठी पहचान अपनाई
साक्ष्यों से यह स्पष्ट है कि आरोपी (बावा) ने प्रणभ जैन के रूप में झूठी पहचान अपनाई। उसके स्कूल व कॉलेज के प्रमाणपत्रों का उपयोग कर सरकारी विभागों को धोखा दिया। उसके नाम पर राशन कार्ड और पासपोर्ट जारी करवाया, जिन पर बावा की तस्वीरें लगी थीं। बावा ने यह राशन कार्ड प्राप्त कर लिया और उसका उपयोग पासपोर्ट आवेदन में समर्थन दस्तावेज के रूप में किया। पुलिस की अपील को स्वीकार करते हुए अदालत ने मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि बावा को अपराधों के लिए दोषी ठहराया जाए। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सजा सुनाई जाएगी।
दिसंबर 2019 को मजिस्ट्रेट अदालत से आरोपी हुआ था बरी
दिसंबर 2019 में मजिस्ट्रेट ने आरोपी गुरमीत सिंह बावा उर्फ सनी को धोखाधड़ी, जालसाजी, झूठी पहचान, नकली दस्तावेज रखने, नकली दस्तावेज का इस्तेमाल करने, और आर्म्स एक्ट के तहत दर्ज अपराधों से बरी किया था।
यह रहा अदालत का निर्देश
5 अप्रैल को दिए गए आदेश में अदालत ने कहा, गुरमीत सिंह बावा के खिलाफ आरोप का मूल यह था कि उसके पास एक अवैध पिस्तौल था, जिसमें छह जिंदा कारतूस लोड थे। उसने खुद को प्रणभ जैन के रूप में प्रस्तुत करते हुए सरकारी प्राधिकरण से नकली राशन कार्ड बनवाया। उस फर्जी राशन कार्ड का उपयोग करके क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी से प्रणभ जैन की पहचान में पासपोर्ट जारी करवाया। साक्ष्यों के वजन के विरुद्ध होने के कारण यह निर्णय विकृत था। रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों के अनुसार, बावा की दोषसिद्धि ही एकमात्र उचित निष्कर्ष था। उसकी बरी होना न्याय की गंभीर विफलता का परिणाम है
यह रही मजिस्ट्रेट अदालत पर टिप्पणी
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा, न्यायिक मजिस्ट्रेट ने गलत तरीके से यह निष्कर्ष निकाला कि चूंकि यह साबित नहीं हुआ कि आवेदन पत्र खुद बावा ने जमा किए, इसलिए वे दस्तावेज भरोसेमंद नहीं हैं। केवल इसलिए कि पासपोर्ट आवेदन पत्र के साथ लगे दस्तावेज पर बावा के हस्ताक्षर स्वप्रमाणित (सेल्फ अटेस्टेड) नहीं थे, मजिस्ट्रेट को फॉरेंसिक साक्ष्यों को खारिज करने का कोई आधार नहीं था, जबकि ये साक्ष्य यह सिद्ध करते हैं कि आवेदन फॉर्म बावा ने ही भरे और जमा किए। अवैध पिस्तौल की बरामदगी को केवल इस आधार पर शक के घेरे में नहीं डाला जा सकता कि पुलिस ने सार्वजनिक गवाहों को जांच में शामिल नहीं किया। अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट अदालत ने साक्ष्यों की सराहना करते समय गलत दिशा में सोचा और बावा को बरी करने के लिए अविवेकपूर्ण और तर्कहीन तर्क दिए।
पुलिस गवाहों की गवाही विश्वसनीय…
अदालत ने कहा, वर्तमान मामले में पुलिस गवाहों की गवाही विश्वसनीय थी और अन्य गवाहों, जिन्होंने सरकारी विभागों में जमा किए गए नकली आवेदन फॉर्म के रिकॉर्ड प्रस्तुत किए, साथ ही फॉरेंसिक हैंडराइटिंग विशेषज्ञ और बैलिस्टिक विशेषज्ञ की रिपोर्ट से पुष्टि हुई।