
Old Gumti Tomb, New Delhi
Delhi News: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार और एमसीडी को लोधी काल के स्मारक “गुमटी ऑफ शेख अली” के चारों ओर से सभी अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया।
भूमि और विकास कार्यालय को सौंप दे….
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने दिल्ली नगर निगम को आदेश दिया कि वह स्मारक परिसर के अंदर स्थित अपने इंजीनियरिंग विभाग के कार्यालय को खाली करे और दो सप्ताह के भीतर इसे भूमि और विकास कार्यालय (Land and Development Office) को सौंप दे।
RWA ने 40 लाख रुपये मुआवजे देने के दिए निर्देश
शीर्ष अदालत ने संबंधित पुलिस उपायुक्त (DCP) और ट्रैफिक DCP को आदेश दिया कि वे क्षेत्र की दैनिक निगरानी करें ताकि आदेश का पालन सुनिश्चित हो सके। अदालत ने यह भी देखा कि डिफेंस कॉलोनी रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA), जिसे स्मारक के अनधिकृत कब्जे के लिए 40 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया गया था, ने अभी तक यह राशि जमा नहीं की है। अदालत ने मुआवजा देने के लिए 14 मई तक की मोहलत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने 25 मार्च को RWA को छह दशक से अधिक समय तक स्मारक के अनधिकृत कब्जे के लिए मुआवजा देने का आदेश दिया था।
स्मारक के जीर्णोद्धार के लिए समिति गठित करने के थे निर्देश
पीठ ने दिल्ली के पुरातत्व विभाग को स्मारक के जीर्णोद्धार के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया और स्थल के शांतिपूर्ण हस्तांतरण की व्यवस्था भूमि और विकास कार्यालय को सौंपने को कहा। अदालत ने उस समय स्वप्ना लिडल द्वारा दायर एक रिपोर्ट की समीक्षा की थी, जो इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) के दिल्ली चैप्टर की पूर्व संयोजक हैं। कोर्ट ने लिडल को स्मारक का सर्वेक्षण और निरीक्षण करने तथा हुए नुकसान और पुनर्स्थापन की आवश्यकता की सीमा का आकलन करने के लिए नियुक्त किया था।
ASI की निष्क्रियता पर शीर्ष कोर्ट ने जताई थी नाराजगी
नवंबर 2024 में पीठ ने डिफेंस कॉलोनी में स्थित इस स्मारक की सुरक्षा करने में विफल रहने पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की आलोचना की थी, जब सीबीआई ने बताया कि एक RWA इस 15वीं सदी की संरचना का उपयोग अपने कार्यालय के रूप में कर रही थी। ASI की निष्क्रियता पर नाराजगी व्यक्त करते हुए पीठ ने कहा, “आप (ASI) किस तरह की संस्था हैं? आपका क्या दायित्व है? आपने प्राचीन संरचनाओं की सुरक्षा के अपने दायित्व से मुंह मोड़ लिया है। आपकी निष्क्रियता से हम चिंतित हैं।पीठ ने RWA की भी आलोचना की, जिसने 1960 के दशक में इस मकबरे पर कब्जा कर लिया था और इसके कब्जे को यह कहकर जायज़ ठहराया कि अन्यथा असामाजिक तत्व इसे नुकसान पहुंचा सकते थे। न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने RWA के व्यवहार और उसके तर्क पर नाराजगी व्यक्त की।
RWA ने संरचना में कई बदलाव किए हैं…
शीर्ष अदालत डिफेंस कॉलोनी के निवासी राजीव सूरी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने अदालत से अनुरोध किया था कि इस संरचना को 1958 के प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम के तहत संरक्षित स्मारक घोषित किया जाए। उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट के 2019 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें ऐसा निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने इस वर्ष की शुरुआत में CBI को निर्देश दिया था कि वह जांच करे कि यह संरचना किस परिस्थिति में RWA के कार्यालय के रूप में इस्तेमाल होने लगी और इस संबंध में रिपोर्ट सौंपे। जांच एजेंसी ने अदालत को बताया कि RWA ने संरचना में कई बदलाव किए हैं, जिनमें एक झूठी छत (फॉल्स सीलिंग) भी शामिल है।
RWA की आपत्तियों के कारण संरक्षित स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया पर रोक
अदालत को यह भी बताया गया कि 2004 में ASI ने इस मकबरे को संरक्षित स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन RWA की आपत्तियों के कारण यह प्रक्रिया रोक दी गई। यह भी जानकारी दी गई कि 2008 में केंद्र सरकार ने इसे संरक्षित संरचना घोषित करने की योजना को रद्द कर दिया था। सूरी की याचिका में कई ऐतिहासिक रिकॉर्डों का हवाला दिया गया है और कहा गया है कि इस संरचना का उल्लेख 1920 में ब्रिटिश कालीन पुरातत्वविद मौलवी ज़फर हसन द्वारा दिल्ली के स्मारकों के सर्वेक्षण में भी किया गया था।