
Bombay High court
MH HC: बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, वैवाहिक विवाद में उलझे माता-पिता अपने अहंकार की संतुष्टि के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
महिला की उस याचिका को खारिज
अदालत ने यह टिप्पणी एक महिला की उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें उसने अपने बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में केवल अपना नाम माता-पिता के रूप में दर्ज करने की मांग की थी। न्यायमूर्ति मंगेश पाटिल और न्यायमूर्ति वाई. जी. खोबरागड़े की औरंगाबाद पीठ ने 28 मार्च को दिए अपने आदेश में कहा कि किसी भी माता-पिता को अपने बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में अपने नाम को दर्ज कराने का कोई विशेष अधिकार नहीं है। यह याचिका इस बात का क्लासिक उदाहरण है कि कैसे एक वैवाहिक विवाद कई मुकदमों की जड़ बन सकता है। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर ₹5,000 का जुर्माना लगाया। अदालत ने यह भी कहा कि यह याचिका न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग और अदालत के कीमती समय की बर्बादी है।
यह रही याचिकाकर्ता की मांग
38 वर्षीय महिला ने यह याचिका दायर कर औरंगाबाद नगर निगम को निर्देश देने की मांग की थी कि उसके बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में केवल उसका नाम माता-पिता के रूप में दर्ज किया जाए और इसी आधार पर नया जन्म प्रमाण पत्र जारी किया जाए। महिला का दावा था कि उसका पति बुरी आदतों का आदी है और उसने कभी अपने बच्चे का चेहरा तक नहीं देखा।
मामले को लेकर अदालत की टिप्पणी
हाई कोर्ट ने कहा, सिर्फ इसलिए कि बच्चे का पिता कुछ बुरी आदतों का आदी है, मां यह दावा नहीं कर सकती कि बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में केवल उसी का नाम दर्ज हो। किसी भी माता-पिता को अपने बच्चे के जन्म रिकॉर्ड से संबंधित कोई विशेष अधिकार प्राप्त नहीं है। माता-पिता के अहंकार पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा, यह याचिका इस बात का प्रमाण है कि वैवाहिक विवाद में उलझे माता-पिता अपने अहंकार की संतुष्टि के लिए किस हद तक जा सकते हैं। अदालत ने कहा कि महिला केवल अपने अहंकार की पूर्ति के लिए ऐसा कर रही है और उसे अपने बच्चे के हितों की कोई परवाह नहीं है। बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है।
वह अपने बच्चे को संपत्ति की तरह मान रही है
कोर्ट ने कहा कि महिला का यह रवैया यह दिखाता है कि वह अपने बच्चे को संपत्ति की तरह मान रही है, जिस पर वह कुछ विशेष अधिकार जता सकती है, जबकि वह बच्चे के हितों और कल्याण की पूरी तरह अनदेखी कर रही है। अदालत ने याचिका को समय की बर्बादी बताते हुए कहा, महिला बच्चे के हितों को कमजोर कर रही है और केवल अपने नाम को जन्म प्रमाण पत्र में दर्ज कराना चाहती है, जो कि गलत और अनुचित है। इस तरह याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग और अदालत के कीमती समय की बर्बादी है।