
National Conference on Environment at New Delhi. Courtesy Agency
Delhi News: सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा ने कहा, भारत पहला देश था, जिसने अंतरराष्ट्रीय न्यायशास्त्र में मानव-केंद्रित दृष्टिकोण से पर्यावरण-केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बदलाव किया है।
प्रकृति केवल मानव उपयोग के लिए नहीं…
शीर्ष अदालत के न्यायमूर्ति बोले, मानव-केंद्रित दृष्टिकोण इस विश्वास पर आधारित है कि मनुष्य पृथ्वी पर सबसे महत्वपूर्ण प्राणी हैं और अन्य जीव तथा वस्तुएं मुख्य रूप से उनके उपयोगिता के आधार पर मूल्यवान मानी जाती हैं। वहीं, पर्यावरण-केंद्रित दृष्टिकोण संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र और उसके घटकों की भलाई को प्राथमिकता देता है तथा प्रकृति को केवल मानव उपयोग के लिए नहीं, बल्कि स्वयं के अस्तित्व के लिए मूल्यवान मानता है।
पर्यावरण-केंद्रित दृष्टिकोण में बदलाव जरूरी…
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश विज्ञान भवन में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की ओर से आयोजित दो दिवसीय पर्यावरण-2025 राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र में इस प्रकार के सम्मेलनों के महत्व को रेखांकित किया। कहा, ये विभिन्न हितधारकों को एक साथ लाकर पर्यावरण को पुनर्स्थापित करने की साझा दृष्टि विकसित करने में सहायक होते हैं। ऐसे सम्मेलन लोगों को एक मंच पर लाते हैं और विचारों के आदान-प्रदान तथा नई दृष्टि और अवधारणाओं को स्वीकार करने में मदद करते हैं। एक ऐसे ही सम्मेलन के बाद मैंने एक विचार अपनाया और न्यायालय में यह प्रस्तुत किया कि पर्यावरण के प्रति मानव-केंद्रित दृष्टिकोण हमारे लिए उपयुक्त नहीं है और इसे पर्यावरण-केंद्रित दृष्टिकोण में बदलना चाहिए।
कभी भी मनुष्य पर्यावरण से श्रेष्ठ नहीं…
न्यायमूर्ति ने कहा, मुझे लगता है कि यह पहली बार था जब हमारे सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार किया। अंतरराष्ट्रीय न्यायशास्त्र में, हम पहले देश, या कहें कि पहली न्यायपालिका थे, जिसने मानव-केंद्रित दृष्टिकोण से पर्यावरण-केंद्रित दृष्टिकोण की ओर बदलाव किया। यह बदलाव इसलिए भी संभव हुआ क्योंकि हमारी संस्कृति ने कभी भी मनुष्यों को पर्यावरण से श्रेष्ठ नहीं माना, बल्कि पारिस्थितिकी को एक जीवित इकाई के रूप में देखा, जिसमें मनुष्य भी एक भाग है। यदि हम मूलभूत बातों पर जाएँ और जमीनी स्तर पर उपलब्ध सरल समाधानों के बारे में सोचें, तो हम पश्चिमी देशों द्वारा पर्यावरण पर लगाए गए प्रभाव से बाहर आ सकते हैं और पृथ्वी को उसके मूल स्वरूप में पुनर्स्थापित करने के लिए सरल और व्यावहारिक विचार उत्पन्न कर सकते हैं।
विचारों और नवाचार के साथ दुनिया का नेतृत्व करें…
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) की भूमिका की सराहना करते हुए कहा, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए उन्होंने कहा कि यह हर इंसान के अस्तित्व को प्रभावित कर रहा है, इसलिए देश को इसके लिए तैयार रहना चाहिए। हमें इस तरह से तैयार रहना चाहिए कि हम अपने विचारों और नवाचार के साथ दुनिया का नेतृत्व कर सकें।
पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास पर सार्थक चर्चा
NGT के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि इस सम्मेलन में पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास पर सार्थक चर्चा हुई, जिसमें वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं, कानूनी विशेषज्ञों और जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। कहा, सम्मेलन के चार तकनीकी सत्रों में पर्यावरणीय चिंताओं वायु, जल, वन और आगे के सामूहिक प्रयासों पर मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान की गई।
सरकार पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान के लिए प्रयास कर रही
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, सरकार पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। भारत में पर्यावरणीय समस्याएं गंभीर हैं, लेकिन उन्हें गंभीरता से लिया जा रहा है। हालांकि, समस्याएं अनेक हैं, लेकिन वे अजेय नहीं हैं। यदि हम अभी कार्यवाही करें, तो हम प्रकृति का संतुलन बहाल कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित कर सकते हैं।