
Supreme Court
SC News: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, यदि इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में गरीबों को मुफ्त इलाज मुहैया नहीं कराया जाता है, तो अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को कहेंगे कि वह इसे अपने अधीन कर ले।
लीज समझौते के कथित उल्लंघन को लेकर कोर्ट गंभीर
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने लीज समझौते के कथित उल्लंघन को गंभीरता से लिया। जिसके तहत इंद्रप्रस्थ मेडिकल कॉरपोरेशन लिमिटेड (आईएमसीएल) द्वारा संचालित अस्पताल को अपने एक तिहाई इनडोर गरीब मरीजों और 40 प्रतिशत आउटडोर मरीजों को बिना किसी भेदभाव के मुफ्त चिकित्सा और अन्य सुविधाएं मुहैया करानी थीं।
15 एकड़ भूमि एक रुपये के पट्टे पर दी गई…
पीठ ने कहा, यदि हमें पता चलता है कि गरीबों को मुफ्त इलाज मुहैया नहीं कराया जा रहा है, तो हम अस्पताल को एम्स को सौंप देंगे। अपोलो समूह द्वारा दिल्ली के पॉश इलाके में 15 एकड़ भूमि पर निर्मित अस्पताल, जिसे प्रतीकात्मक रूप से 1 रुपये के पट्टे पर दिया गया था, को न लाभ न हानि के फॉर्मूले पर चलाया जाना था, लेकिन इसके बजाय यह एक शुद्ध वाणिज्यिक उद्यम बन गया है, जहां गरीब लोग मुश्किल से इलाज करा पाते हैं।
अस्पताल पर दो लाख रुपये जुर्माना भी लगाया…
उच्च न्यायालय ने कहा, बाह्य रोगी (ओपीडी) सुविधाएं लोगों तक पहुंचनी चाहिए और इसके लिए आईएमसीएल को निर्देश दिया जाता है कि वह अपने परिसर में और विज्ञापनों के माध्यम से प्रमुखता से प्रदर्शित करे कि ओपीडी के 40 प्रतिशत मरीज मुफ्त इलाज के हकदार हैं। उच्च न्यायालय ने मामले को चुनौती देने और समझौते के तहत नागरिकों को मुफ्त इलाज देने की अपनी जिम्मेदारी से बचने के लिए तुच्छ आपत्तियां उठाने के लिए 2 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
मरीजों के देखभाल के बजाय मुनाफा कमा रही सरकार, यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण
आईएमसीएल की ओर से उपस्थित वकील ने कहा कि अस्पताल एक संयुक्त उद्यम के रूप में चलाया जा रहा है और दिल्ली सरकार की इसमें 26 प्रतिशत हिस्सेदारी है तथा उसे भी आय में बराबर का लाभ मिल रहा है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने वकील से कहा, अगर दिल्ली सरकार गरीब मरीजों की देखभाल करने के बजाय अस्पताल से मुनाफा कमा रही है, तो यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात है। पीठ ने कहा कि अस्पताल को 30 साल के पट्टे पर जमीन दी गई थी, जो 2023 में समाप्त होनी थी और केंद्र और दिल्ली सरकार से यह पता लगाने को कहा कि इसका पट्टा समझौता नवीनीकृत हुआ या नहीं।
आईएमसीएल की याचिका पर सुनवाई कर रही शीर्ष कोर्ट
दरअसल, शीर्ष अदालत आईएमसीएल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के 22 सितंबर, 2009 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि अस्पताल प्रशासन ने इनडोर और आउटडोर गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज देने के समझौते की शर्तों का दंड से मुक्त उल्लंघन किया है। इसने केंद्र और दिल्ली सरकार से पूछा कि अगर पट्टा समझौता नहीं बढ़ाया गया है तो उक्त जमीन के संबंध में क्या कानूनी कवायद की गई है। पीठ ने अस्पताल में मौजूदा कुल बिस्तरों की संख्या भी जानने की मांग की और पिछले पांच वर्षों के ओपीडी मरीजों का रिकॉर्ड मांगा।
पांच वर्षो में कितने गरीब मरीजों का इलाज किया, बताएं…
पीठ ने कहा, हलफनामों में यह भी बताया जाएगा कि पिछले पांच वर्षों में कितने गरीब मरीजों को मुफ्त इलाज मुहैया कराया गया। पीठ ने अस्पताल प्रशासन से निरीक्षण दल के साथ सहयोग करने और निगरानी प्राधिकरण द्वारा मांगे गए सभी प्रासंगिक रिकॉर्ड उपलब्ध कराने को कहा। शीर्ष अदालत ने अस्पताल प्रशासन को हलफनामा दाखिल करने की भी स्वतंत्रता दी और मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की।
22 सितंबर, 2009 को दिए गए थे अस्पताल प्रशासन को निर्देश
22 सितंबर, 2009 को उच्च न्यायालय ने अस्पताल प्रशासन को निर्देश दिया था कि वह मुफ्त बिस्तरों में से एक तिहाई यानी 200 बिस्तरों को पर्याप्त जगह और आवश्यक सुविधाओं के साथ इनडोर मरीजों को मुहैया कराए और 40 प्रतिशत आउटडोर मरीजों को मुफ्त सुविधाओं के लिए आवश्यक व्यवस्था भी करे। कहा था, विशेष या सुपर स्पेशलिटी वाले सभी सरकारी अस्पतालों को, चाहे वह सामान्य अस्पताल ही क्यों न हो, विशेष रेफरल केंद्र (काउंटर/कमरे) स्थापित करने होंगे। ये केंद्र अस्पताल के कैजुअल्टी और नियमित ओपीडी का हिस्सा होंगे। अस्पताल के कैजुअल्टी में लाए गए गंभीर हालत वाले मरीजों को, यदि आवश्यक हो, तो अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक/निदेशक द्वारा तत्काल उपचार के लिए इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में रेफर किया जाना चाहिए।उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता अशोक अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत अखिल भारतीय अधिवक्ता संघ (दिल्ली इकाई) की याचिका पर आदेश पारित किया था।
तीन प्रतियों में रिकॉर्ड तैयार किए जाएंगे…
शीर्ष कोर्ट ने निर्देश दिया था कि संदर्भ देते समय, तीन प्रतियों में रिकॉर्ड तैयार किए जाएंगे, जिनमें से एक प्रति रोगी को दी जाएगी, दूसरी प्रति महानिदेशक स्वास्थ्य सेवाओं को दी जाएगी और तीसरी प्रति अस्पताल द्वारा रखी जाएगी। उच्च न्यायालय ने अपने 70-पृष्ठ के आदेश में कहा था, इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ऐसे रोगियों को भर्ती करेगा और उन्हें भर्ती, बिस्तर, उपचार, सर्जरी आदि से संबंधित किसी भी खर्च से मुक्त करेगा, जिसमें उपभोग्य वस्तुएं और दवाएं शामिल हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसे रोगियों को इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में अपने इलाज के लिए कोई खर्च नहीं देना होगा। इसने आगे कहा था कि इनडोर रोगियों (कुल बिस्तरों का 33 प्रतिशत) के रूप में मुफ्त उपचार के हकदार व्यक्ति की उचित पहचान और वर्गीकरण किया जाना चाहिए।